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अहोई अष्टमी 2025: जानें इस पर्व की पौराणिक कथा और महत्व

अहोई अष्टमी 2025 का व्रत कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन संतानवती महिलाएं अपनी संतान की लंबी उम्र और समृद्धि की कामना करती हैं। जानें इस पर्व की पौराणिक कथा, जिसमें स्याहू का श्राप और सुरही गाय की सेवा का उल्लेख है। देवी पार्वती के स्वरूप मानी जाने वाली अहोई माता की पूजा का महत्व भी इस लेख में बताया गया है।
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अहोई अष्टमी 2025: जानें इस पर्व की पौराणिक कथा और महत्व

अहोई अष्टमी व्रत 2025


अहोई अष्टमी व्रत 2025: कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को अहोई अष्टमी का व्रत श्रद्धा और विश्वास के साथ मनाया जाता है। इस दिन विशेष रूप से संतानवती महिलाएं अपनी संतान की लंबी उम्र और समृद्धि की कामना करते हुए व्रत करती हैं और शाम को तारे देखने के बाद अपना व्रत खोलती हैं। यह पर्व खासकर उत्तर भारत में धूमधाम से मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन माता पार्वती के अहोई स्वरूप की पूजा करने से संतान से जुड़ी सभी बाधाएं दूर होती हैं। इस अवसर पर अहोई माता की पूजा, व्रत कथा और आरती का विशेष महत्व होता है।


अहोई अष्टमी व्रत की पौराणिक कथा

प्राचीन कथाओं के अनुसार, एक साहूकार था जिसके सात बेटे और एक बेटी थी। सभी बेटियों का विवाह हो चुका था। दिवाली से कुछ दिन पहले साहूकार की बेटी अपने मायके आई। उस समय उसकी भाभियां घर को लीपने के लिए जंगल से मिट्टी लाने जा रही थीं, और वह भी उनके साथ चली गई।


जंगल में जिस स्थान से वह मिट्टी काट रही थी, वहां स्याहू (साही) अपने सात बेटों के साथ रहती थी। मिट्टी काटते समय अनजाने में साहूकार की बेटी की खुरपी से स्याहू के एक बेटे को चोट लग गई, जिससे उसकी मृत्यु हो गई।


स्याहू का श्राप और संतान हानि

इस घटना से क्रोधित होकर स्याहू ने साहूकार की बेटी को श्राप दिया कि उसकी कोख बांध दी जाएगी। वह घबरा गई और अपनी भाभियों से विनती करने लगी, लेकिन सभी ने मना कर दिया। अंत में उसकी छोटी भाभी ने उसकी बात मान ली। श्राप के प्रभाव से छोटी भाभी की सातों संतानें जन्म के सातवें दिन मृत्यु को प्राप्त हो जाती थीं।


सुरही गाय की सेवा और श्राप से मुक्ति

थक-हारकर छोटी भाभी ने एक पंडित से उपाय पूछा। पंडित ने उसे सुरही गाय की सेवा करने की सलाह दी। उसने पूरे मन से गाय की सेवा शुरू कर दी। सेवा से प्रसन्न होकर एक दिन सुरही गाय उसे स्याहू के पास ले गई।


छोटी भाभी ने स्याहू की सेवा की। उसकी भक्ति और सेवा भावना से प्रसन्न होकर स्याहू ने उसे सात पुत्र और बहुएं होने का आशीर्वाद दिया। तभी से कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को स्याहू का चित्र बनाकर उनकी पूजा करने की परंपरा शुरू हुई, जिसे अहोई अष्टमी या अहोई आठें कहा जाता है।


देवी पार्वती का स्वरूप मानी जाती हैं अहोई माता

अहोई माता को देवी पार्वती का एक रूप माना जाता है, जो संतान की रक्षा करती हैं। इस दिन व्रत रखने वाली महिलाएं दिनभर निर्जला व्रत करती हैं और शाम को तारों को अर्घ्य देकर अपना व्रत खोलती हैं। पूजा के समय अहोई माता की कथा और आरती पढ़ी जाती है, जिससे माता का आशीर्वाद प्राप्त होता है.