आषाढ़ सोम प्रदोष व्रत: महत्व और पूजा विधि
आषाढ़ सोम प्रदोष व्रत भगवान शिव को समर्पित है, जो हर महीने की त्रयोदशी को मनाया जाता है। इस व्रत का विशेष महत्व है, क्योंकि इसे रखने वाले की सभी इच्छाएं पूरी होती हैं। जानें इस व्रत का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और मंत्रों का जाप कैसे करें। इस बार प्रदोष व्रत का आयोजन मास शिवरात्रि के साथ भी हो रहा है, जिससे व्रति को दोगुना लाभ मिलेगा।
Jun 23, 2025, 10:50 IST
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आषाढ़ सोम प्रदोष व्रत का महत्व
आज आषाढ़ सोम प्रदोष व्रत मनाया जा रहा है, जो भगवान शिव को समर्पित है। यह व्रत हर महीने की त्रयोदशी को आयोजित किया जाता है। इस महीने का प्रदोष व्रत विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसे रखने वाले की सभी इच्छाएं पूरी होती हैं। आइए, हम आपको इस व्रत के महत्व और पूजा विधि के बारे में जानकारी देते हैं।
आषाढ़ सोम प्रदोष व्रत का विशेष महत्व
आषाढ़ में होने वाला प्रदोष व्रत अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन प्रदोष काल में पूजा का विशेष महत्व है। त्रयोदशी तिथि को भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है। यह व्रत संतान की प्राप्ति के लिए भी लाभकारी है। इस दिन शिव-पार्वती की शाम की पूजा और जागरण का आयोजन किया जाता है। पंचांग के अनुसार, सोम प्रदोष व्रत 23 जून को मनाया जाएगा, और इस बार व्रति को दोगुना लाभ प्राप्त होगा।
आषाढ़ सोम प्रदोष व्रत का शुभ मुहूर्त
पंचांग के अनुसार, 23 जून को सोम प्रदोष व्रत का आयोजन होगा। यह सोमवार होने के कारण सोम प्रदोष कहलाता है। त्रयोदशी तिथि 22 जून को मध्य रात्रि 1:22 बजे से शुरू होगी और 23 जून को रात 10:09 बजे तक रहेगी। इस बार प्रदोष व्रत का आयोजन मास शिवरात्रि व्रत के साथ भी हो रहा है, जिससे व्रति को दोगुना लाभ मिलेगा।
भगवान शिव की पूजा का महत्व
शास्त्रों के अनुसार, प्रदोष व्रत में भगवान शिव और माता पार्वती की विशेष पूजा की जाती है। प्रदोष काल में भगवान शिव कैलाश पर्वत पर निवास करते हैं और इस समय सभी देवी-देवता उनकी उपासना करते हैं। जो व्यक्ति सच्चे मन से भगवान शिव की पूजा करते हैं, उनकी सभी इच्छाएं पूरी होती हैं।
आषाढ़ सोम प्रदोष व्रत की पूजा विधि
पंडितों के अनुसार, इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और सूर्य देव को जल अर्पित करें। फिर भगवान शिव का ध्यान करें और घी का दीपक जलाकर व्रत का संकल्प लें। इसके बाद शिव और माता पार्वती की विधिवत पूजा करें और शिवलिंग का अभिषेक करें। शाम को प्रदोष काल में शिवालय जाकर शिवलिंग पर बेलपत्र, धतूरा, भांग, चंदन आदि अर्पित करें। भगवान शिव के मंत्र का जप करें और शिव चालीसा का पाठ करें। अंत में आरती करें।
शिव जी के मंत्रों का जाप
1. ॐ नमः शिवाय
2. ॐ नमो भगवते रूद्राय
3. ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात
4. ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्
5. कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारम् भुजगेन्द्रहारम्।
2. ॐ नमो भगवते रूद्राय
3. ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात
4. ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्
5. कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारम् भुजगेन्द्रहारम्।
सुख-समृद्धि में वृद्धि
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, प्रदोष व्रत के दिन तांबे के लोटे से शिवलिंग पर जल चढ़ाएं और 'ओम नमः शिवाय' मंत्र का जप करें। इस उपाय से साधक को पूजा का पूर्ण फल प्राप्त होता है और शिव जी की कृपा से सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है।
आषाढ़ सोम प्रदोष व्रत के नियम
पंडितों के अनुसार, सोमवार की सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और व्रत का संकल्प लें। दिनभर 'ऊं नमः शिवाय' का जाप करें और भोजन न करें। यदि स्वास्थ्य ठीक न हो, तो फलाहार कर सकते हैं। शाम को शुभ मुहूर्त में पूजा सामग्री एकत्रित कर शिवजी की पूजा करें। पूजा के बाद अपनी इच्छानुसार भोग लगाएं और आरती करें। इस तरह पूजा करने से आपकी सभी इच्छाएं पूरी हो सकती हैं।
भगवान शिव की पूजा का महत्व
आषाढ़ सोम प्रदोष व्रत में भगवान शिव और माता पार्वती की विशेष पूजा अर्चना की जाती है। प्रदोष काल में पूजा का विशेष महत्व है। इस समय जो भी व्यक्ति सच्चे दिल से भगवान शिव की उपासना करते हैं, उनकी सभी इच्छाएं पूरी होती हैं।