आषाढ़ स्कंद षष्ठी व्रत: महत्व और पूजा विधि
आषाढ़ स्कंद षष्ठी व्रत का महत्व और पूजा विधि जानें। इस दिन भगवान कार्तिकेय की पूजा से सभी प्रकार के दोष समाप्त होते हैं। जानें इस व्रत के लाभ और शुभ मुहूर्त के बारे में।
Jun 30, 2025, 11:51 IST
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आषाढ़ स्कंद षष्ठी व्रत का महत्व
आज आषाढ़ स्कंद षष्ठी व्रत मनाया जा रहा है, जो सोमवार को आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि पर आता है। इस दिन भगवान स्कंद कुमार की पूजा का विशेष महत्व है, इसलिए इसे स्कंद षष्ठी कहा जाता है। इस दिन व्रत रखने और भगवान कार्तिकेय की पूजा करने से सभी प्रकार के दोष और पाप समाप्त हो जाते हैं। आइए, हम आपको आषाढ़ स्कंद षष्ठी व्रत के महत्व और पूजा विधि के बारे में बताते हैं।
आषाढ़ स्कंद षष्ठी व्रत की जानकारी
हिंदू धर्म में आषाढ़ मास में स्कंद षष्ठी का विशेष महत्व है। इसे षष्ठी व्रत और कुमार षष्ठी भी कहा जाता है, जो भगवान कार्तिकेय (स्कंद) की पूजा का दिन है। हर महीने शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र कार्तिकेय की पूजा की जाती है। इस दिन विशेष रूप से भगवान कार्तिकेय की पूजा के साथ व्रत भी रखा जाता है। स्कंद षष्ठी का व्रत हर माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को किया जाता है। इस दिन भगवान स्कंद की पूजा करने से सभी प्रकार के रोग, दोष, काम, क्रोध, मद, लोभ आदि समाप्त हो जाते हैं। इस बार स्कंद षष्ठी के दिन रवि योग बन रहा है, जिसमें सूर्य का प्रभाव अधिक होता है, जिससे सभी प्रकार के दोष समाप्त हो जाते हैं। भगवान कार्तिकेय को स्कंद, कुमार, सुब्रह्मण्य, मुरुगन आदि नामों से भी जाना जाता है।
आषाढ़ स्कंद षष्ठी का शुभ मुहूर्त
हिंदू कैलेंडर के अनुसार, स्कंद षष्ठी का व्रत आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि 30 जून को मनाया जाएगा।
आषाढ़ स्कंद षष्ठी व्रत के लाभ
पंडितों के अनुसार, जो लोग संतानहीन हैं, उन्हें स्कंद षष्ठी का व्रत रखकर भगवान कार्तिकेय की पूजा करनी चाहिए, जिससे संतान की प्राप्ति हो सकती है। यदि आपके जीवन में धन और वैभव की कमी है, तो आपको भी इस व्रत को रखना चाहिए, जिससे माता लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होगी। इस बार स्कंद षष्ठी गुरुवार को है, जो विष्णु पूजा के लिए समर्पित है। इस दिन स्कंद कुमार और भगवान विष्णु की पूजा करने से आपके कार्य सफल होंगे और जीवन में सुख और समृद्धि आएगी। संतान की लंबी आयु और शत्रुओं को पराजित करने के लिए भी इस व्रत का महत्व है।
भगवान स्कंद के बारे में जानें
भगवान स्कंद शक्ति के अधिदेव हैं और देवताओं के सेनापति माने जाते हैं। इनकी पूजा विशेष रूप से दक्षिण भारत में होती है, जहां इन्हें मुरुगन के नाम से भी जाना जाता है। भगवान स्कंद हिंदू धर्म के प्रमुख देवताओं में से एक हैं और इन्हें कार्तिकेय और मुरुगन के नाम से भी पुकारा जाता है। दक्षिण भारत में इनकी पूजा खासतौर पर तमिलनाडु और अन्य दक्षिणी राज्यों में होती है।
आषाढ़ स्कंद षष्ठी व्रत से जुड़ी पौराणिक कथा
भगवान कार्तिकेय की जन्म कथा के अनुसार, जब दैत्य तारकासुर का आतंक बढ़ गया था, तब देवताओं ने भगवान ब्रह्मा से सहायता मांगी। ब्रह्मा ने बताया कि तारकासुर का अंत भगवान शिव के पुत्र द्वारा ही संभव है। इसके बाद भगवान शिव ने पार्वती से विवाह किया और कार्तिकेय का जन्म हुआ, जिन्होंने तारकासुर का वध किया और देवताओं को उनका स्थान लौटाया।
आषाढ़ स्कंद षष्ठी व्रत में पूजा के नियम
स्कंद षष्ठी पर भगवान शिव और पार्वती की पूजा की जाती है। मंदिरों में विशेष पूजा की जाती है, जिसमें स्कंद देव (कार्तिकेय) की स्थापना और पूजा होती है। इस दिन मांस, शराब, प्याज, लहसुन का त्याग करना चाहिए और ब्रह्मचर्य का पालन करना आवश्यक है।
आषाढ़ स्कंद षष्ठी व्रत का महत्व
स्कंद पुराण में इस व्रत का विधान संतान प्राप्ति और संतान की पीड़ाओं को दूर करने के लिए बताया गया है। इस दिन उपवास करके कार्तिकेय की पूजा करने से दुश्मनों पर विजय प्राप्त होती है और सभी परेशानियाँ समाप्त होती हैं।
आषाढ़ स्कंद षष्ठी व्रत के दिन करें पूजा, मिलेगा लाभ
पंडितों के अनुसार, इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और साफ वस्त्र पहनें। सूर्य देव को अर्घ्य दें और मंदिर की सफाई करें। भगवान कार्तिकेय की मूर्ति को स्थापित करें और आरती करें। अंत में प्रसाद का वितरण करें।