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इंदिरा एकादशी: 17 सितंबर को तुलसी पूजा विधि जानें

इंदिरा एकादशी, जो इस वर्ष 17 सितंबर को मनाई जाएगी, भगवान विष्णु और पितरों की कृपा प्राप्त करने का एक महत्वपूर्ण अवसर है। इस दिन तुलसी की पूजा का विशेष महत्व है। जानें इस दिन तुलसी की पूजा कैसे करें, क्या नियम हैं और कौन से मंत्रों का जप करना चाहिए। इस लेख में हम आपको बताएंगे कि एकादशी के दिन तुलसी की पूजा विधि क्या है और इसके पीछे का धार्मिक महत्व क्या है।
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इंदिरा एकादशी: 17 सितंबर को तुलसी पूजा विधि जानें

इंदिरा एकादशी का महत्व


भगवान विष्णु और पितरों की कृपा के लिए महत्वपूर्ण है इंदिरा एकादशी
हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का विशेष महत्व है। यह व्रत भगवान विष्णु को समर्पित होता है। तुलसी को भगवान विष्णु की प्रिय माना जाता है, इसलिए एकादशी के दिन तुलसी की पूजा का महत्व और बढ़ जाता है। इस वर्ष इंदिरा एकादशी पितृ पक्ष में आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को मनाई जाएगी।


तुलसी पूजा की विधि

एकादशी के दिन तुलसी की पूजा करने के लिए कुछ नियमों का पालन करना आवश्यक है। सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और फिर विधिपूर्वक भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा करें। इसके बाद बिना स्पर्श किए तुलसी जी की पूजा करें।


तुलसी पर 16 शृंगार का सामान

तुलसी को लाल चुनरी, सिंदूर आदि अर्पित करें और उसकी आरती करें। शाम को तुलसी के पास घी का दीपक जलाएं और 7 बार परिक्रमा करें। ध्यान रखें कि एकादशी के दिन तुलसी में जल अर्पित नहीं करना चाहिए।


जरूरी कार्य

एकादशी के दिन भगवान विष्णु के भोग में तुलसी दल अवश्य शामिल करें, क्योंकि इसके बिना भोग अधूरा माना जाता है। हालांकि, एकादशी के दिन तुलसी के पत्ते तोड़ने की मनाही होती है। आप तुलसी के गमले में या आसपास गिरे हुए साफ पत्तों का उपयोग कर सकते हैं।


मंत्रों का जप


  • ॐ नमो: भगवते वासुदेवाय नम:।

  • महाप्रसाद जननी सर्व सौभाग्यवर्धिनी, आधि व्याधि हरा नित्यं तुलसी त्वं नमोस्तुते।।


तुलसी स्तुति मंत्र


  • देवी त्वं निर्मिता पूर्वमर्चितासि मुनीश्वरै:
    नमो नमस्ते तुलसी पापं हर हरिप्रिये।।

  • तुलसी श्रीर्महालक्ष्मीर्विद्याविद्या यशस्विनी।
    धर्म्या धर्मानना देवी देवीदेवमन: प्रिया।।

  • लभते सुतरां भक्तिमन्ते विष्णुपदं लभेत।
    तुलसी भूर्महालक्ष्मी: पद्मिनी श्रीर्हरप्रिया।।

  • तुलसी नामाष्टक मंत्र

  • वृंदा वृंदावनी विश्वपूजिता विश्वपावनी।
    पुष्पसारा नंदनीय तुलसी कृष्ण जीवनी।।

  • एतभामांष्टक चैव स्त्रोतं नामर्थं संयुतम।
    य: पठेत तां च सम्पूज्य सौश्रमेघ फलंलमेता।।