इमाम हुसैन की शहादत पर शायरी: मुहर्रम की गहराई में छिपा संदेश

इमाम हुसैन की शहादत का महत्व
मुहर्रम, इस्लामिक कैलेंडर का पहला महीना, केवल खुशियों का नहीं, बल्कि बलिदान और धैर्य का प्रतीक है। यह वह समय है जब हज़रत मोहम्मद (स.अ.) के पोते, इमाम हुसैन, ने कर्बला के मैदान में अत्याचार के खिलाफ संघर्ष किया और शहादत प्राप्त की। उनकी कुर्बानी न केवल न्याय और सच्चाई का उदाहरण है, बल्कि यह उन सभी दिलों को प्रेरित करती है जो कठिनाइयों में हार नहीं मानते। इस महीने में लोग मजलिसों, मातम और हुसैनी शायरी के माध्यम से उनके बलिदान को याद करते हैं। आइए, इन भावनात्मक पंक्तियों के जरिए इमाम हुसैन की शहादत को श्रद्धांजलि अर्पित करें।
10 मुहर्रम शायरी
“जिसने मौत को गले लगाया सिर्फ़ हक़ की खातिर, हुसैन का नाम हर दिल की आवाज़ है।”
“साजिशें और तलवारें थीं, फौजें भी बेइंतहां थीं, मगर हुसैन अकेले थे-और फिर भी हारा यज़ीद।”
“रुख़ हवा का बदल गया था, लेकिन इरादा नहीं, मुहर्रम ने दिखा दिया क्या होता है सब्र।”
“लिखा जो लहू से इमाम ने इंकलाब, वो क़लम आज भी चलती है शायरी के जवाब।”
“बेटे, भाई, और दोस्त—all कुर्बान कर दिए, जब भी देखो शहादत की मिसाल, हुसैन याद आते हैं।”
कर्बला की शायरी
“ख़ामोशियाँ बोल उठीं थीं उस मैदान में, ये मुहर्रम है साहब, यहां हर कतरा शहादत की दास्तां है।”
कर्बला की शहादत इस्लाम बना गयी, खून तो बहा था लेकिन कुर्बानी हौसलों की उड़ान दिखा गयी।
कर्बला की कहानी में कत्लेआम था लेकिन हौसलों के आगे हर कोई गुलाम था, खुदा के बन्दे ने शहीद की कुर्बानी दी इसलिए उसका नाम पैगाम बना।
हुसैनी शायरी
सबा भी जो गुजरे कर्बला से तो उसे कहता है अर्थ वाला, तू धीरे गुजर यहाँ मेरा हुसैन सो रहा है।
ना जाने क्यों मेरी आँखों में आ गए आँसू, सिखा रहा था मैं बच्चे को कर्बला लिखना।
पानी का तलब हो तो एक काम किया कर, कर्बला के नाम पर एक जाम पिया कर, दी मुझको हुसैन इब्न अली ने ये नसीहत, जालिम हो मुकाबिल तो मेरा नाम लिया कर।
कर्बला की शायरी का महत्व
हुसैनी शायरी केवल शब्दों का खेल नहीं, बल्कि एक गहरा एहसास है। यह उस दर्द को बयां करती है, जो इमाम हुसैन और उनके साथियों ने कर्बला में सहा। हर शायरी में उनकी वफादारी, हिम्मत और बलिदान की कहानी छिपी है। ये पंक्तियां न केवल दिल को छूती हैं, बल्कि उस दौर की त्रासदी को आज भी जीवित रखती हैं। मुहर्रम में ये शायरी आपके दुख और श्रद्धा को व्यक्त करने का बेहतरीन जरिया है।
इमाम हुसैन पर शायरी
खून से चराग-ए-दीन जलाया हुसैन ने, रस्म-ए-वफ़ा को खूब निभाया हुसैन ने, खुद को तो एक बूँद न मिल सका लेकिन करबला को खून पिलाया हुसैन ने।
दश्त-ए-बाला को अर्श का जीना बना दिया, जंगल को मुहम्मद का मदीना बना दिया।
न हिला पाया वो रब की मैहर को, भले ही जीत गया वो कायर जंग, पर जो मौला के डर पर बैखोफ शहीद हुआ, वही था असली और सच्चा पैगंबर।