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ईश्वर को भोग लगाने की विधि और महत्व

हिंदू धर्म में पूजा के बाद भगवान को भोग अर्पित करने की परंपरा महत्वपूर्ण है। यह भोग श्रद्धा और आस्था से भरा होता है। जानें कि भोग को कितनी देर तक रखना चाहिए, इसे कैसे अर्पित करना चाहिए और इसके पीछे का महत्व क्या है। इस लेख में हम आपको भोग लगाने की सही विधि और उसके महत्व के बारे में विस्तार से बताएंगे।
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ईश्वर को भोग लगाने की विधि और महत्व

ईश्वर को भोग लगाने की परंपरा

हिंदू धर्म में पूजा-पाठ या अनुष्ठान के बाद भगवान को भोग अर्पित करने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। पूजा समाप्त होने के बाद, भक्तजन ईश्वर को भोग अर्पित करते हैं, जिसे बाद में भक्तों में वितरित किया जाता है। यह भोग केवल भोजन या मिठाई नहीं होता, बल्कि यह श्रद्धा, आस्था और प्रेम से भरा एक उपहार होता है, जिसे हम अपने सामर्थ्य के अनुसार ईश्वर को अर्पित करते हैं।


ईश्वर को भोग लगाने का महत्व

हिंदू धर्म में भोग अर्पित करना पूजा का एक अनिवार्य हिस्सा माना जाता है। यह मान्यता है कि भगवान को प्रसन्न करने के लिए उन्हें भोग अर्पित किया जाता है, जिसे प्रसाद के रूप में बांटा जाता है। संस्कृत में इसे 'नैवेद्य' कहा जाता है, जिसका अर्थ है 'प्रस्तुति' या 'अर्पण'। भोग को श्रद्धा और सात्विकता के साथ तैयार किया जाता है और इसे बिना चखे पहले भगवान को अर्पित किया जाता है।


भोग लगाने की विधि

यदि आप नियमित रूप से भगवान को भोग अर्पित करते हैं, तो यह सुनिश्चित करें कि आप ऐसे बर्तन का उपयोग करें, जिसका आप स्वयं घर में उपयोग नहीं करते। भोग हमेशा साफ-सुथरे बर्तनों में अर्पित किया जाना चाहिए। पीतल या चांदी के बर्तन शुभ माने जाते हैं, जबकि लोहे या स्टील के बर्तनों का उपयोग नहीं करना चाहिए। भोग अर्पित करते समय थाली को सीधे जमीन पर नहीं रखना चाहिए।


भोग को कितनी देर रखें

ज्योतिष के अनुसार, भोग को ईश्वर के सामने 5-10 मिनट तक रखना चाहिए। इस दौरान आपके मन में भगवान को भोग अर्पित करने की भावना होनी चाहिए। अन्य सांसारिक कार्यों का विचार नहीं करना चाहिए। अधिकतम 15 मिनट तक भोग रखा जा सकता है। 1-2 घंटे या उससे अधिक समय तक भोग को ईश्वर के सामने नहीं छोड़ना चाहिए, क्योंकि इससे निगेटिव एनर्जी उत्पन्न हो सकती है।


भोग लगाने का सही तरीका

भोग अर्पित करते समय कुछ बातों का ध्यान रखना आवश्यक है। भोग अर्पित करते समय मंत्रों का उच्चारण करना चाहिए। भोग लगाने के बाद भगवान की आरती की जाती है और घंटी बजाना शुभ माना जाता है। भोग को हमेशा तांबे या पीतल के पात्र में अर्पित करना चाहिए और इसके साथ साफ जल रखना चाहिए। भोग को हमेशा ढककर रखना चाहिए, ताकि उसमें कोई कीट या धूल न गिरे।