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एकादशी पर चावल का महाप्रसाद: जगन्नाथ पुरी की अनोखी परंपरा

एकादशी के दिन चावल का सेवन वर्जित माना जाता है, लेकिन ओडिशा के जगन्नाथ पुरी मंदिर में यह परंपरा भिन्न है। यहां भक्तों को एकादशी के दिन चावल का महाप्रसाद दिया जाता है। इस अनोखी परंपरा के पीछे एक रोचक कथा है, जिसमें ब्रह्मदेव और भगवान जगन्नाथ की कहानी शामिल है। जानें इस परंपरा का महत्व और इसके पीछे की धार्मिक मान्यताएं।
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एकादशी पर चावल का महाप्रसाद: जगन्नाथ पुरी की अनोखी परंपरा

एकादशी पर चावल का सेवन: एक अद्भुत परंपरा

हम सभी जानते हैं कि एकादशी के दिन चावल खाना वर्जित माना जाता है। दादी-नानी से सुनते आए हैं कि एकादशी पर चावल का सेवन अशुभ होता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत में एक ऐसा मंदिर है, जहां एकादशी के दिन चावल को भक्तों में महाप्रसाद के रूप में बांटा जाता है और सभी इसे ग्रहण करते हैं?


यह अद्भुत परंपरा ओडिशा के जगन्नाथ पुरी मंदिर की है, जहां एकादशी के दिन भी भक्तों को चावल का महाप्रसाद दिया जाता है। ऐसे में आप सोच रहे होंगे कि जब पूरे देश में एकादशी पर चावल वर्जित है, तो पुरी में इसे क्यों खाया जाता है?


इसके पीछे एक रोचक कथा है। कहा जाता है कि एक बार ब्रह्मदेव भगवान जगन्नाथ के दर्शन करने पुरी आए और महाप्रसाद ग्रहण करना चाहा। लेकिन जब वे पहुंचे, तब तक सारा महाप्रसाद समाप्त हो चुका था। इसी दौरान उन्होंने देखा कि एक कोने में पत्तों की थाली में कुछ चावल बचे हैं, जिन्हें एक कुत्ता खा रहा था।


ब्रह्मदेव ने उन चावलों को उठाकर आदरपूर्वक खाना शुरू कर दिया। यह देखकर भगवान जगन्नाथ स्वयं प्रकट हुए और बोले, 'हे ब्रह्मदेव! आपने मेरे महाप्रसाद को ग्रहण किया है। अब से मेरे इस धाम में एकादशी के दिन भी महाप्रसाद के रूप में चावल दिया जाएगा।'


यह परंपरा तब से आज तक चली आ रही है। हालांकि, देश के अन्य मंदिरों में एकादशी के दिन चावल का सेवन वर्जित माना जाता है। विष्णु पुराण में कहा गया है कि एकादशी के दिन चावल खाना पुण्य को नष्ट करता है। चावल को देवताओं का भोजन माना गया है, इसलिए उनके सम्मान में इस दिन लोग चावल से परहेज करते हैं।


एक अन्य मान्यता यह भी है कि महर्षि मेधा ने माता शक्ति के क्रोध से बचने के लिए एकादशी के दिन अपने शरीर का त्याग किया था और उनका अगला जन्म चावल के रूप में हुआ। इसलिए इस दिन चावल को नहीं खाने की परंपरा है।