कजरी तीज व्रत की कथा: पति की लंबी उम्र के लिए विशेष पूजा

कजरी तीज व्रत का महत्व
Kajari Teej Vrat Katha: हर साल महिलाएं खुशी-खुशी कजरी तीज का व्रत करती हैं। यह व्रत कठिन होता है क्योंकि इसमें अन्न और जल का सेवन वर्जित होता है। फिर भी, सुहागिन महिलाएं अपने पतियों की लंबी उम्र और सुखद वैवाहिक जीवन के लिए इसे रखती हैं। इसके अलावा, कई अविवाहित कन्याएं भी अच्छे जीवनसाथी की कामना में कजरी माता की पूजा करती हैं। द्रिक पंचांग के अनुसार, भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को कजरी तीज का व्रत मनाया जाता है, जो हरियाली तीज के 15 दिन बाद आता है। इस दिन भगवान शिव और देवी पार्वती की विशेष पूजा की जाती है। व्रत की कथा सुनना और पढ़ना आवश्यक होता है, अन्यथा व्रती को पूजा का पूरा फल नहीं मिलता। आइए जानते हैं कजरी तीज के व्रत की संपूर्ण कथा।
कजरी तीज की पौराणिक कथा
कथा के अनुसार, एक गांव में एक ब्राह्मण और उसकी पत्नी रहते थे। ब्राह्मण की आर्थिक स्थिति बहुत खराब थी, जिससे उसकी पत्नी चिंतित रहती थी। एक दिन, पत्नी ने कजरी तीज का व्रत रखने का निश्चय किया और ब्राह्मण से चने का सत्तू लाने को कहा। लेकिन ब्राह्मण के पास पैसे नहीं थे। उसने पत्नी को बताया कि उसके पास पैसे नहीं हैं। पत्नी ने कहा, 'मुझे कुछ नहीं पता। आपको सत्तू लाना ही होगा।'
ब्राह्मण ने एक दुकान पर जाकर देखा कि दुकानदार सो रहा है। उसने चुपके से दुकान में जाकर सत्तू चुराने की कोशिश की, लेकिन दुकानदार जाग गया और चोर-चोर चिल्लाने लगा। ब्राह्मण ने कहा, 'मैं चोर नहीं हूं। मेरी पत्नी ने कजरी तीज का व्रत रखा है और उसे सत्तू चाहिए।'
दुकानदार ने उसकी बात सुनी और उसकी तलाशी ली, लेकिन कुछ नहीं मिला। फिर भी, उसने ब्राह्मण की बात सुनकर उसे भावुकता से देखा और उसकी पत्नी को बहन मान लिया। उसने ब्राह्मण को पैसे, सत्तू और श्रृंगार का सामान दिया। ब्राह्मण ने सब कुछ लेकर घर जाकर पत्नी को बताया और दोनों ने मिलकर कजरी माता की पूजा की। इसके बाद से उनके जीवन में हमेशा खुशहाली बनी रही। इसी कारण से कजरी तीज का व्रत रखने की परंपरा शुरू हुई। मान्यता है कि जो महिलाएं सच्चे मन से यह व्रत करती हैं, उनके पतियों को लंबी उम्र का आशीर्वाद मिलता है और वैवाहिक जीवन में खुशियां बनी रहती हैं।