कबीरदास जयंती 2025: कबीरदास जी के 10 प्रेरणादायक दोहे

कबीरदास जी का जीवन और शिक्षाएं
Kabirdas Jayanti 2025: कबीरदास जी भारतीय संत और कवि के रूप में अत्यंत प्रसिद्ध हैं। उनका जन्म लगभग 600 वर्ष पूर्व वाराणसी में हुआ था। कहा जाता है कि उनका जन्म ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन हुआ था। कबीरदास जी निर्गुण संत थे, अर्थात् वे भगवान को मूर्तियों और मंदिरों से परे मानते थे। उन्होंने यह सिखाया कि ईश्वर हर जगह विद्यमान हैं और सभी के दिलों में बसे हुए हैं। उनके अनुसार, सभी धर्म समान हैं और जाति या धर्म के आधार पर किसी को छोटा या बड़ा नहीं समझना चाहिए।
कबीरदास जी के विचारों का महत्व
कबीरदास जी ने समाज में व्याप्त बुराइयों, दिखावे और झगड़ों के खिलाफ आवाज उठाई। उनके जीवन और विचार हमें सच्चाई, प्रेम और अच्छाई का मार्ग दिखाते हैं। उन्होंने कई सुंदर दोहे लिखे हैं, जो छोटी-छोटी बातों में गहरी सीख देते हैं। आज भी लोग उनके दोहे पढ़ते हैं और उनसे प्रेरणा लेते हैं। आइए, कबीरदास जी के 10 प्रसिद्ध दोहे जानते हैं, जो किसी की भी जिंदगी को बदल सकते हैं।
कबीरदास जी के 10 प्रसिद्ध दोहे
1. बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय॥
अर्थ: जब मैंने बुराई खोजने की कोशिश की, तो मुझे कोई बुरा व्यक्ति नहीं मिला। लेकिन जब मैंने अपने भीतर झाँका, तो पाया कि मुझसे बुरा कोई नहीं है। यह दोहा आत्म-निरीक्षण की प्रेरणा देता है।
2. जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान।
मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान॥
अर्थ: किसी संत की जाति नहीं पूछनी चाहिए, बल्कि उसके ज्ञान पर ध्यान देना चाहिए।
3. ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोय।
औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होय॥
अर्थ: हमें ऐसी मीठी वाणी बोलनी चाहिए, जिससे दूसरों को शांति मिले।
4. काल करे सो आज कर, आज करे सो अब।
पल में परलय होएगी, बहुरि करेगा कब॥
अर्थ: जो काम कल करना है, उसे आज कर लो। समय का महत्व समझना चाहिए।
5. निंदक नियरे राखिए, आंगन कुटी छवाय।
बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय॥
अर्थ: आलोचना करने वाले को अपने पास रखना चाहिए, क्योंकि वह हमें सुधारने में मदद करता है।
6. माटी कहे कुम्हार से, तू क्या रोंदे मोय।
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रोंदूंगी तोय॥
अर्थ: यह दोहा अहंकार त्यागने और मृत्यु की अनिवार्यता को स्वीकार करने की सीख देता है।
7. पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय।
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय॥
अर्थ: प्रेम का ज्ञान सबसे महत्वपूर्ण है, जो केवल किताबों से नहीं मिलता।
8. कबीरा खड़ा बाजार में, मांगे सबकी खैर।
ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर॥
अर्थ: कबीरदास जी सभी की भलाई की कामना करते हैं, बिना किसी पक्षपात के।
9. जब तुम आए जगत में, लोग हंसे तुम रोए।
ऐसी करनी कर चलो, तुम हंसो लोग रोए॥
अर्थ: अपने कर्म ऐसे करो कि जब तुम जाओ, तो लोग तुम्हारे लिए रोए।
10. दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे, तो दुःख काहे को होय॥
अर्थ: हमें हर परिस्थिति में ईश्वर को याद करना चाहिए।