करवा चौथ: आध्यात्मिकता का पर्व और इसका महत्व

करवा चौथ का महत्व
करवा चौथ एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसे सुहागिनों का त्यौहार भी कहा जाता है। इस दिन हिंदू महिलाएं अपने पतियों की लंबी उम्र और स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना करती हैं। यह व्रत सबसे कठिन माना जाता है क्योंकि इस दिन निर्जल रहना पड़ता है।
क्या आपने कभी सोचा है कि इस व्रत का असली अर्थ क्या है? अन्य व्रतों की तरह, इसका भी एक आध्यात्मिक महत्व है। हमारे देश में आध्यात्मिकता हर जगह बसी हुई है। सभी त्यौहार और व्रत आत्म-उन्नति के लिए बनाए गए हैं, और इनका उद्देश्य अंततः मोक्ष और ईश्वर की प्राप्ति है। समय के साथ, असली उद्देश्य भुला दिया जाता है और हम रस्मों में उलझ जाते हैं। परम संत कृपाल सिंह महाराज ने कहा है कि हमारे सभी व्रत और त्यौहार आध्यात्मिकता पर आधारित हैं, और यही हमारे देश की विशेषता है। आइए, हम समझते हैं कि करवा चौथ में आध्यात्मिकता का क्या राज है।
करवा चौथ पर महिलाएं सुबह तारे देखकर व्रत रखती हैं और शाम को चाँद देखकर इसे खोलती हैं। यह वास्तव में एक आध्यात्मिक यात्रा का प्रतीक है, जो हमें एक स्तर से दूसरे स्तर तक ले जाती है। यह तारे से चाँद तक का सफर आत्मा और परमात्मा के मिलन का वर्णन करता है। इस व्रत का सार्थक होना तब है जब हम सुबह अपने भीतर तारे देखें, दिनभर प्रभु की याद में रहें, और शाम को अपने भीतर चाँद देखें।
हालांकि, अक्सर माताएं और विवाहित महिलाएं व्रत तो रखती हैं, लेकिन दिन का अधिकांश समय प्रभु की याद में नहीं बितातीं। असली उद्देश्य तो यही था कि दिनभर प्रभु की भक्ति में समय बिताया जाए।
हमें चाहिए कि हम अपना समय व्यर्थ न करें। सुबह ध्यान में बैठें, दिनभर प्रभु की याद में रहें, और शाम को अपने भीतर के चाँद को देखें। बाहरी चाँद हर रात नहीं दिखता, लेकिन आंतरिक चाँद हमेशा हमारे साथ होता है।