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कलावा: हिंदू धर्म में इसकी महत्वता और ज्योतिषीय अर्थ

कलावा, जिसे रक्षा सूत्र भी कहा जाता है, हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण धार्मिक प्रतीक है। यह न केवल एक धागा है, बल्कि इसके पीछे गहरा ज्योतिषीय और आध्यात्मिक अर्थ है। जानें कि शादी से पहले लड़कियों के दाहिने हाथ में और शादी के बाद बाएं हाथ में इसे बांधने का क्या कारण है। इस लेख में हम कलावा के महत्व और इसके पीछे के धार्मिक सिद्धांतों पर चर्चा करेंगे।
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कलावा का धार्मिक और ज्योतिषीय महत्व

हिंदू धर्म में पूजा के दौरान कलाई पर बंधा कलावा, जिसे रक्षा सूत्र भी कहा जाता है, केवल एक धागा नहीं है, बल्कि यह एक धार्मिक ऊर्जा का प्रतीक है। यह प्रथा हजारों वर्षों से चली आ रही है, जिसमें पुजारी इसे मंत्रों के साथ बांधते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि शादी से पहले लड़कियों के दाहिने हाथ में और शादी के बाद बाएं हाथ में कलावा क्यों बांधा जाता है? इसका उत्तर धार्मिक, ज्योतिषीय और आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है।


शादी से पहले दाहिने हाथ में कलावा बांधने का कारण यह है कि अविवाहित लड़कियों को ब्रह्मचारी माना जाता है। हिंदू शास्त्रों के अनुसार, दाहिना हाथ कर्म, अनुशासन और सूर्य ऊर्जा का प्रतीक है। यह हाथ "पिंगला नाड़ी" से जुड़ा होता है, जो आत्मविश्वास और निर्णय क्षमता को बढ़ाता है। इसलिए अविवाहित लड़कियों को दाहिने हाथ में कलावा बांधने से आध्यात्मिक ऊर्जा और मानसिक मजबूती मिलती है।


विवाह के बाद, महिलाएं अर्धांगिनी बन जाती हैं। शास्त्रों के अनुसार, अर्धांगिनी का आधा भाग बाईं ओर होता है। बायां हाथ "ईड़ा नाड़ी" से जुड़ा है, जो शीतलता और चंद्र ऊर्जा का प्रतीक है। इसलिए शादी के बाद महिलाएं बाएं हाथ में कलावा बांधती हैं, ताकि वे अपने वैवाहिक जीवन में संतुलन और प्रेम बनाए रख सकें।


ज्योतिषीय दृष्टिकोण से भी यह महत्वपूर्ण है: दाहिना हाथ (पिंगला नाड़ी) सूर्य तत्व, तेज और शक्ति का प्रतीक है, जबकि बायां हाथ (ईड़ा नाड़ी) चंद्र तत्व, शीतलता और भावनात्मक संतुलन का प्रतीक है। ये नाड़ियां हमारे जीवन के ऊर्जा चक्रों को संतुलित करती हैं।


कलावा को कलाई पर तीन बार लपेटने का निर्देश है, जो त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) और त्रिऋण (देवऋण, ऋषिऋण, पितृऋण) का प्रतीक है। इस प्रकार, यह केवल एक रक्षा सूत्र नहीं, बल्कि पूरे ब्रह्मांडीय संतुलन का प्रतीक बन जाता है।