कांवड़ यात्रा के नियम और महत्व: सावन में शिव की भक्ति

कांवड़ यात्रा के नियम
कांवड़ उठाने के नियम: सावन का महीना 11 जुलाई से आरंभ हो चुका है, और इस दौरान शिव भक्तों की भक्ति की गूंज चारों ओर सुनाई दे रही है। लाखों भक्त पवित्र नदियों से गंगाजल लेकर शिवलिंग पर अर्पित करते हैं। यह यात्रा केवल आस्था का प्रतीक नहीं है, बल्कि अनुशासन, शुद्धता और समर्पण का भी उदाहरण है।
कांवड़ यात्रा का महत्व
कांवड़ यात्रा का महत्व
कांवड़ यात्रा सावन के पूरे महीने चलती है, लेकिन कई स्थानों पर यह 11 जुलाई से शुरू होकर 23 जुलाई को समाप्त होती है। यह यात्रा हजारों वर्षों पुरानी है और मान्यता है कि इससे भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और भक्तों की इच्छाएं पूरी होती हैं। लेकिन यदि यात्रा नियमों का पालन नहीं किया गया, तो इसका फल व्यर्थ हो जाता है।
कांवड़ यात्रा के नियम
कांवड़ यात्रा के नियम
- कांवड़ को ज़मीन पर ना रखें - गंगाजल से भरी कांवड़ को जमीन पर नहीं रखना चाहिए। इसे लकड़ी के स्टैंड पर या पेड़ पर लटकाना चाहिए। यदि कांवड़ जमीन को छूती है, तो फल व्यर्थ हो जाएगा।
- पूरी तरह शुद्ध होकर उठाएं कांवड़ - यात्रा शुरू करने से पहले अपने मन से बुरे विचारों को निकाल दें।
- मांस-मदिरा से दूरी - सावन में मांस, शराब, सिगरेट, तंबाकू और लहसुन-प्याज से दूर रहें।
- साफ-सफाई का ध्यान रखें - हर दिन स्नान करना अनिवार्य है। अपवित्र कार्य के बाद स्नान किए बिना कांवड़ को छूना मना है।
- चमड़े की वस्तुओं का उपयोग न करें - चमड़े से बनी वस्तुओं का उपयोग न करें।
क्यों होती है कांवड़ यात्रा?
क्यों होती है कांवड़ यात्रा?
कहा जाता है कि समुद्र मंथन के दौरान भगवान शिव ने विष का पान किया था, जिससे वे नीलकंठ कहलाए। सावन में गंगाजल चढ़ाने से शिव को शांति मिलती है और भक्तों को उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है। यही कारण है कि यह यात्रा आस्था और कृतज्ञता का प्रतीक बन गई है।