कृष्ण जन्माष्टमी: भगवान श्रीकृष्ण का अवतरण और इसकी महत्ता
कृष्ण जन्माष्टमी, जो श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाई जाती है, भगवान श्रीकृष्ण के अवतरण का पर्व है। इस दिन श्रद्धालु व्रत रखते हैं और भक्ति भाव से भगवान की कथा सुनते हैं। मथुरा नगरी इस अवसर पर भक्ति के रंगों से सराबोर हो जाती है, जहां भक्त दूर-दूर से आते हैं। इस लेख में जानें जन्माष्टमी का महत्व, पूजा विधि और इसके पीछे की कथा।
Aug 14, 2025, 15:33 IST
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कृष्ण जन्माष्टमी का महत्व
श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को भगवान श्रीकृष्ण ने अत्याचारी कंस का विनाश करने के लिए पृथ्वी पर अवतरण किया था। इस दिन को विश्वभर में कृष्ण जन्माष्टमी के रूप में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन व्रत करने वाले व्यक्ति को ऐश्वर्य और मोक्ष की प्राप्ति होती है। व्रत करने वाला व्यक्ति इस जन्म में सभी सुखों का अनुभव करता है और अंत में मोक्ष को प्राप्त करता है। इसके अलावा, जो भक्तिभाव से भगवान श्रीकृष्ण की कथा सुनते हैं, उनके सभी पाप समाप्त हो जाते हैं और उन्हें उत्तम गति प्राप्त होती है।
मथुरा में जन्माष्टमी का उत्सव
जन्माष्टमी के अवसर पर मथुरा नगरी भक्ति के रंगों से भर जाती है। इस पावन अवसर पर श्रद्धालु दूर-दूर से भगवान कान्हा की मोहक छवि देखने के लिए मथुरा आते हैं। इस दिन रात्रि बारह बजे तक व्रत रखा जाता है और मध्यरात्रि होते ही श्रीकृष्ण के जन्म का उत्सव मनाया जाता है। मंदिरों में झांकियां सजाई जाती हैं और भगवान कृष्ण को झूला झुलाया जाता है। विभिन्न स्थानों पर रासलीला के माध्यम से कृष्ण के जीवन की घटनाओं का प्रदर्शन किया जाता है।
व्रत की विधि और पूजा
जन्माष्टमी का व्रत करना अनिवार्य माना जाता है। विभिन्न धर्मग्रंथों में कहा गया है कि उत्सव समाप्त होने तक भोजन नहीं करना चाहिए, लेकिन फलाहार की अनुमति है। इस दिन घर में भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति या शालिग्राम का दूध, दही, शहद, यमुनाजल आदि से अभिषेक कर सजाना चाहिए। इसके बाद श्रीविग्रह का षोडशोपचार विधि से पूजन करना चाहिए। रात को बारह बजे शंख और घंटों की आवाज से श्रीकृष्ण के जन्म की सूचना चारों दिशाओं में गूंज उठती है। इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण की आरती उतारकर प्रसाद ग्रहण किया जाता है।
कृष्ण जन्माष्टमी की कथा
कथा के अनुसार, द्वापर युग में पृथ्वी पर राक्षसों का अत्याचार बढ़ गया था। पृथ्वी ने ब्रह्माजी से अपने उद्धार की प्रार्थना की। भगवान विष्णु ने कहा कि वे देवकी के गर्भ से जन्म लेंगे। देवकी और वासुदेव को कारागार में बंद कर दिया गया था। कंस ने देवकी की सभी संतानों को मारने का निश्चय किया। भाद्रपद के कृष्णपक्ष की अष्टमी को श्रीकृष्ण का जन्म हुआ। उनके जन्म लेते ही जेल में प्रकाश फैल गया। वासुदेव ने श्रीकृष्ण को गोकुल भेजा और कन्या को कंस को सौंप दिया। कंस ने कन्या को मारने का प्रयास किया, लेकिन वह देवी का रूप धारण कर उड़ गई। कंस ने श्रीकृष्ण को मारने के लिए अनेक दैत्यों को भेजा, लेकिन श्रीकृष्ण ने सभी को मार डाला और अंत में कंस को भी पराजित किया। तभी से जन्माष्टमी का उत्सव बड़े हर्षोल्लास से मनाया जाता है।