खीर भवानी मंदिर में श्रद्धालुओं की उमड़ी भीड़, आतंक के साए में भी कायम है आस्था

आतंक के साए में भी आस्था की जीत
जम्मू-कश्मीर में हाल ही में पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले ने दहशत का माहौल पैदा कर दिया है। लेकिन, मां खीर भवानी के प्रति श्रद्धा ने इस डर को पीछे छोड़ दिया है। गांदरबल जिले के तुलमुला में स्थित खीर भवानी मंदिर में माता की जयंती के अवसर पर हजारों श्रद्धालु एकत्रित हुए हैं। मंदिर परिसर भक्तों की जयकारों से गूंज उठा है, जो यह दर्शाता है कि घाटी में आस्था की जड़ें आतंक से कहीं अधिक गहरी हैं।
खीर भवानी मंदिर का उत्सव
हर साल की तरह इस बार भी खीर भवानी मंदिर में माता रानी का जन्मोत्सव बड़े उत्साह और भक्ति के साथ मनाया जा रहा है। मंदिर में उमड़ी भीड़ ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि कश्मीर में आतंक के सामने आस्था कभी नहीं झुकती।
खीर भवानी मंदिर और उसकी मान्यता
तुलमुला में स्थित खीर भवानी मंदिर केवल धार्मिक आस्था का केंद्र नहीं है, बल्कि इसके कुंड में मौजूद जल को देवी का जलस्वरूप माना जाता है। यह जल समय-समय पर अपना रंग बदलता है, जिसे शुभ और अशुभ संकेतों से जोड़ा जाता है। भक्तजन इसे देवी के मूड और भविष्य की घटनाओं की भविष्यवाणी के प्रतीक के रूप में देखते हैं।
हरा और नीला रंग – शांति, समृद्धि और शुभ समय का प्रतीक है।
लाल और काला रंग – संकट, विनाश और अशांति का संकेत है।
हर साल यह जल अलग-अलग रंग में दिखाई देता है और उसके अनुसार घाटी में संभावित घटनाओं को लेकर कयास लगाए जाते हैं।
भविष्यवाणियों का इतिहास
इस पवित्र कुंड में जल का रंग कई बार बड़ी घटनाओं से पहले बदला है और ये भविष्यवाणियाँ सच भी साबित हुई हैं।
1990 में कुंड का जल काला हुआ था, उसी साल कश्मीरी पंडितों का पलायन हुआ।
1999 में कारगिल युद्ध से पहले भी जल का रंग अशुभ दिखा।
2014 में केमिकल ब्लड त्रासदी से पहले लाल रंग देखा गया।
2020 में COVID-19 महामारी के दौरान भी जल गहरा होता देखा गया।
हमले और खतरों के बावजूद हजारों भक्तों ने मंदिर में पहुंचकर माता के दर्शन किए और दूध-जल अर्पित कर अपनी मनोकामनाएं मांगी। यह भक्तिभाव स्पष्ट करता है कि कश्मीर में चाहे कितनी भी उथल-पुथल हो, धार्मिक आस्था हमेशा कायम रहती है।