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गणाधिप संकष्टी चतुर्थी 2025: पूजा विधि और शुभ मुहूर्त

गणाधिप संकष्टी चतुर्थी 2025 का व्रत भगवान गणेश को समर्पित है, जो संकटों को दूर करने में मदद करता है। यह व्रत अगहन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है, जो इस बार 8 नवंबर को है। इस दिन विशेष पूजा विधि और शुभ मुहूर्त का पालन करना आवश्यक है। जानें इस दिन की पूजा विधि, चंद्रोदय का समय और व्रत का महत्व, जिससे आपके जीवन में सुख और समृद्धि आएगी।
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गणाधिप संकष्टी चतुर्थी 2025: पूजा विधि और शुभ मुहूर्त

जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और चंद्रोदय का समय


Sankashti Chaturthi, नई दिल्ली: संकष्टी चतुर्थी का व्रत भगवान गणेश को समर्पित होता है। हर महीने की चतुर्थी तिथि भगवान गणेश के लिए होती है। अगहन (मार्गशीर्ष) मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणाधिप संकष्टी चतुर्थी का व्रत रखा जाता है। यह व्रत दुखों और संकटों को दूर करने वाला माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन विधि-विधान से गणेश जी की पूजा करने से भक्तों के जीवन से सभी बाधाएं दूर होती हैं और सुख-सौभाग्य की प्राप्ति होती है। आइए जानते हैं साल 2025 में गणाधिप संकष्टी चतुर्थी कब है, शुभ मुहूर्त क्या है और पूजा विधि क्या है।


गणाधिप संकष्टी चतुर्थी 2025 कब है?

अगहन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि पर गणाधिप संकष्टी चतुर्थी मनाई जाती है। यह तिथि 8 नवंबर 2025, शनिवार को पड़ रही है। इस दिन व्रत रखने और चंद्रमा को अर्घ्य देने का विशेष महत्व है।


गणाधिप संकष्टी चतुर्थी शुभ मुहूर्त


  • चतुर्थी तिथि का प्रारंभ: 08 नवंबर को सुबह 07 बजकर 32 मिनट पर होगा।

  • चतुर्थी तिथि का समापन: 09 नवंबर को सुबह 04 बजकर 25 मिनट पर रहेगा।

  • पंचांग के अनुसार, गणाधिप संकष्टी चतुर्थी 08 नवंबर 2025, शनिवार को रहेगी।

  • चंद्रोदय का समय: संध्याकाल 08 बजकर 01 मिनट के बाद।

  • संकष्टी चतुर्थी पर चंद्र दर्शन करना और चंद्रमा को अर्घ्य देना अनिवार्य होता है। इसलिए, 08 नवंबर को ही गणाधिप संकष्टी चतुर्थी का व्रत रखना और पूजा करना शुभ रहेगा।


गणाधिप संकष्टी चतुर्थी की पूजा विधि

गणाधिप संकष्टी चतुर्थी के दिन व्रत और पूजा करने से भगवान गणेश प्रसन्न होते हैं और सभी कष्ट दूर करते हैं।



  • सुबह स्नान: व्रत के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और साफ वस्त्र धारण करें।

  • संकल्प: इसके बाद हाथ में जल, अक्षत और फूल लेकर व्रत का संकल्प लें।

  • गणेश पूजा: एक चौकी पर भगवान गणेश की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें। उन्हें रोली, अक्षत, दूर्वा घास, फूल, माला और चंदन अर्पित करें।

  • भोग: गणपति को मोदक या लड्डू का भोग लगाएं। यह भोग उन्हें अत्यंत प्रिय है।

  • कथा और मंत्र: गणेश चालीसा का पाठ करें और संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा सुनें। इस दिन ॐ गं गणपतये नम: मंत्र का जाप करना फलदायी होता है।

  • दिनभर उपवास: दिनभर फलाहार व्रत रखें। शाम को चंद्रमा निकलने से पहले एक बार फिर गणेश जी की पूजा करें।

  • चंद्र दर्शन और अर्घ्य: चंद्रोदय होने पर चंद्रमा के दर्शन करें और उन्हें जल, दूध, और अक्षत मिलाकर अर्घ्य दें।

  • व्रत खोलना: चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही व्रत का पारण करें और सात्विक भोजन ग्रहण करें।


गणाधिप संकष्टी चतुर्थी का महत्व

मार्गशीर्ष माह में आने वाली इस चतुर्थी का विशेष महत्व है। इसे गणाधिप संकष्टी चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। संकष्टी का अर्थ है संकटों को हरने वाला। मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने और पूजा करने से जीवन की सभी प्रकार की बाधाएं और संकट दूर हो जाते हैं। गणेश जी की कृपा से घर में सुख-समृद्धि और शांति का वास होता है। गणेश जी को बुद्धि और ज्ञान का देवता माना जाता है। इनकी पूजा करने से ज्ञान में वृद्धि होती है। ज्योतिष मान्यताओं के अनुसार, जो लोग इस दिन चंद्रमा को अर्घ्य देते हैं, उनके चंद्र दोष शांत होते हैं और मानसिक शांति प्राप्त होती है।