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चातुर्मास: शुभ कार्यों का समय और महत्व

चातुर्मास हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण अवधि है, जिसमें मांगलिक कार्यों पर रोक लगाई जाती है। यह 6 जुलाई से शुरू होकर 1 नवंबर 2025 तक चलेगा। इस दौरान कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जा सकता। जानें चातुर्मास के बाद पहला शुभ मुहूर्त और इसके धार्मिक महत्व के बारे में।
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चातुर्मास: शुभ कार्यों का समय और महत्व

चातुर्मास का महत्व

हिंदू धर्म में चातुर्मास का एक विशेष स्थान है। इस अवधि में विवाह, गृह प्रवेश, नामकरण, मुंडन और जनेऊ जैसे मांगलिक कार्यों को नहीं किया जाता है। इस वर्ष चातुर्मास 6 जुलाई से आरंभ होगा और 1 नवंबर 2025 तक चलेगा। इसके बाद से शुभ कार्यों की शुरुआत होगी। ध्यान देने योग्य बात यह है कि चातुर्मास से पहले 12 जून से 9 जुलाई तक 27 दिनों के लिए बृहस्पति अस्त रहेगा, जिसके कारण इस दौरान भी कोई शुभ कार्य नहीं होंगे। इस प्रकार, चातुर्मास से पहले का अंतिम विवाह तिथि 8 जून थी। आइए जानते हैं कि चातुर्मास समाप्त होने के बाद पहला शुभ मुहूर्त कौन सा होगा...


चातुर्मास की अवधि

06 जुलाई से 01 नवंबर 2025 तक चातुर्मास

आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 05 जुलाई को शाम 06:58 बजे प्रारंभ होगी और 06 जुलाई को रात 09:14 बजे समाप्त होगी। चातुर्मास के दौरान हिंदी महीनों श्रावण, भाद्रपद, अश्विन और कार्तिक का समावेश होता है। 1 नवंबर से देवउठनी एकादशी के साथ शुभ समय की शुरुआत होगी।


चातुर्मास की परिभाषा

चातुर्मास क्या है

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस समय भगवान जगत के पालनहार योग निद्रा में चले जाते हैं, जिसके कारण कोई भी शुभ कार्य वर्जित होता है। इसलिए, यह समय साधना, व्रत, तप और भक्ति के लिए उपयुक्त माना जाता है, न कि त्योहारों और मांगलिक आयोजनों के लिए।