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जगन्नाथ रथ यात्रा: रस्सियों के पीछे छिपा है अद्भुत आध्यात्मिक महत्व

पुरी धाम की जगन्नाथ रथ यात्रा 27 जून से शुरू होने जा रही है, जिसमें लाखों श्रद्धालु शामिल होते हैं। इस यात्रा में रथ की रस्सियों का खींचना विशेष महत्व रखता है, जो जीवन-मरण के बंधनों से मुक्ति दिलाने का माध्यम माना जाता है। जानें इन रस्सियों के नाम, खींचने की प्रक्रिया और इसके पीछे छिपे आध्यात्मिक फल के बारे में।
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जगन्नाथ रथ यात्रा: रस्सियों के पीछे छिपा है अद्भुत आध्यात्मिक महत्व

जगन्नाथ रथ यात्रा का भव्य आयोजन

पुरी धाम में जगन्नाथ रथ यात्रा 27 जून से धूमधाम से आरंभ होने जा रही है। इस ऐतिहासिक उत्सव को देखने के लिए देश-विदेश से श्रद्धालु आते हैं। जब भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के रथ नगर में निकलते हैं, तो भक्तों का उत्साह अद्वितीय होता है। रथ यात्रा के दौरान रथ की रस्सियों को खींचने का विशेष महत्व है। मान्यता है कि इन रस्सियों को छूने से जीवन-मरण के बंधनों से मुक्ति मिलती है।


रथ की रस्सियों के नाम और महत्व

जगन्नाथ रथ यात्रा में तीन प्रमुख रथ होते हैं: भगवान जगन्नाथ का नंदीघोष रथ, बलभद्र का तालध्वज रथ, और सुभद्रा का पद्मध्वज रथ। इन रथों की रस्सियों के भी विशेष नाम हैं: नंदीघोष रथ की रस्सी को 'शंखचूड़ा नाड़ी', तालध्वज रथ की रस्सी को 'वासुकी', और पद्मध्वज रथ की रस्सी को 'स्वर्णचूड़ा नाड़ी' कहा जाता है। ये रस्सियां केवल रथ खींचने का साधन नहीं, बल्कि आस्था और मोक्ष का प्रतीक भी हैं।


क्या कोई भी खींच सकता है रथ की रस्सी?

हां, जगन्नाथ रथ यात्रा की रस्सी को कोई भी व्यक्ति खींच सकता है, चाहे वह किसी भी धर्म, जाति या देश से हो। पुरी पहुंचकर जो श्रद्धा से रस्सी को छूता है, उसे भगवान जगन्नाथ की कृपा प्राप्त होती है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, जो भक्त रस्सी को खींचता है, उसे जीवन-मरण के चक्र से मुक्ति मिलती है।


रस्सी को छूने का आध्यात्मिक फल

श्रद्धालु रथ यात्रा के दौरान रस्सी को छूने के लिए घंटों इंतजार करते हैं, क्योंकि मान्यता है कि इसे छूने से सभी पाप धुल जाते हैं। इससे भक्ति और पुण्य में वृद्धि होती है, जीवन में सौभाग्य का उदय होता है, और भगवान जगन्नाथ की विशेष कृपा प्राप्त होती है। यदि कोई भक्त यात्रा में शामिल होता है लेकिन रस्सी को छू नहीं पाता, तो उसकी यात्रा अधूरी मानी जाती है।


रस्सी का पुण्यदायी महत्व

जगन्नाथ रथ की रस्सी को ईश्वर से जुड़ने का माध्यम माना जाता है। इसे छूने का अर्थ है भगवान जगन्नाथ को स्पर्श करना। मान्यता है कि यह पुण्य कर्म अगले जन्मों के पापों को समाप्त कर सकता है और जीवन को मोक्ष की ओर ले जाता है।