जन्माष्टमी 2023: श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव का महत्व और पूजा विधि

जन्माष्टमी का पर्व
जन्माष्टमी का त्योहार भगवान विष्णु के आठवें अवतार, श्रीकृष्ण के जन्म का उत्सव है। इस दिन, मंदिरों और घरों को विशेष रूप से सजाया जाता है, भजन और कीर्तन गाए जाते हैं, और भक्त कान्हा को झूला झुलाते हैं। इस वर्ष, जन्माष्टमी के व्रत और पूजा के लिए विशेष मुहूर्त और पारण का समय अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है।
जन्माष्टमी का उत्सव
इस साल, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का उत्सव 16 अगस्त की रात को मनाया जाएगा। ज्योतिषीय गणना के अनुसार, कान्हा का जन्म मध्यरात्रि 12:47 बजे होगा। व्रत पारण के लिए दो शुभ समय निर्धारित किए गए हैं: पहला 16 अगस्त की रात 12:47 बजे के बाद और दूसरा 17 अगस्त की सुबह 5:51 बजे के बाद। भक्त अपनी सुविधा के अनुसार इनमें से किसी एक समय का चयन कर सकते हैं।
पारण का महत्व
कई श्रद्धालु व्रत पारण अगले दिन सूर्योदय के बाद करते हैं। सुबह नित्य कर्म से निवृत्त होकर स्नान करने के बाद भगवान कृष्ण की विधिवत पूजा की जाती है और सात्विक भोजन या प्रसाद से व्रत तोड़ा जाता है। ध्यान रहे कि व्रत का पारण लहसुन, प्याज या मांसाहार से नहीं करना चाहिए, यह धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है।
ज्योतिषीय संयोग
जन्माष्टमी के आसपास ग्रहों की चाल विशेष संयोग बना रही है। इस सप्ताह सूर्य सिंह राशि में प्रवेश करेंगे और केतु के साथ युति करेंगे। वहीं, शुक्र कर्क राशि में जाकर बुध के साथ लक्ष्मी-नारायण योग का निर्माण करेंगे। इसके अलावा, गजलक्ष्मी, महालक्ष्मी और नवपंचम जैसे कई शुभ राजयोग भी बन रहे हैं। ज्योतिषियों के अनुसार, इन योगों से कई राशियों के जातकों को अप्रत्याशित धन लाभ और सफलता मिल सकती है।
व्रत और पूजा विधि
जन्माष्टमी पर भक्त निर्जला या फलाहारी व्रत रखते हैं। पूरे दिन उपवास के बाद रात 12 बजे भगवान श्रीकृष्ण की जन्मलीला का स्मरण करते हुए विशेष पूजा-अर्चना होती है। कान्हा को झूला झुलाया जाता है, भजन-कीर्तन किए जाते हैं और फिर भोग लगाया जाता है। पारंपरिक भोग में माखन-मिश्री, खीर, आटे के पूए और धनिया की पंजीरी शामिल होती है। पूजा के बाद आरती कर भूल-चूक के लिए क्षमा याचना की जाती है। इसके बाद भक्त प्रसाद ग्रहण कर व्रत का पारण कर सकते हैं।