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झारखंड के देवघर में भगवान शिव का भव्य मंदिर और उसकी पौराणिक कथा

झारखंड के देवघर में स्थित भगवान शिव का भव्य मंदिर हर साल सावन में लाखों श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है। इस मंदिर की पौराणिक कथा रावण से जुड़ी है, जिसने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप किया। जानें कैसे रावण ने शिवलिंग की स्थापना की और भगवान विष्णु ने उसकी योजना को कैसे विफल किया। इस लेख में इस प्रसिद्ध मंदिर के महत्व और मान्यताओं के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई है।
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झारखंड के देवघर में भगवान शिव का भव्य मंदिर और उसकी पौराणिक कथा

देवघर का प्रसिद्ध शिव मंदिर

झारखंड के देवघर में भगवान शिव का एक पवित्र और भव्य मंदिर स्थित है। हर वर्ष सावन के महीने में यहां श्रावण मेला आयोजित होता है, जिसमें लाखों श्रद्धालु भगवान शिव के दर्शन के लिए आते हैं। सुल्तानगंज से पवित्र गंगा का जल लेकर श्रद्धालु लगभग 100 किमी की यात्रा करते हैं और भोलेबाबा को जल अर्पित करते हैं। इस दौरान यहां की आध्यात्मिक वातावरण अद्भुत होती है। यह मंदिर रामायण काल से जुड़ी एक रोचक कहानी का हिस्सा है। आइए जानते हैं इस प्रसिद्ध मंदिर के बारे में और अधिक।


लंका में ज्योतिर्लिंग की स्थापना

पौराणिक कथाओं के अनुसार, रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए हिमालय में कठोर तप किया। उसने अपने 9 सिरों को एक-एक करके शिवलिंग पर अर्पित किया। जब वह अपना अंतिम सिर काटने वाला था, भगवान शिव ने उसे वरदान मांगने के लिए कहा।


भगवान विष्णु की लीला

जब रावण ने शिवलिंग को लंका ले जाने की इच्छा जताई, तो भगवान विष्णु ने उसे रोकने का निर्णय लिया। उन्होंने वरुण देव को आदेश दिया कि वह रावण को शिवलिंग ले जाने से रोकें।


रावण जब ज्योतिर्लिंग के साथ यात्रा कर रहा था, तभी उसे लघुशंका लगी। उसने एक ग्वाले को देखा और शिवलिंग उसे सौंपकर लघुशंका के लिए चला गया। जब वह वापस आया, तो देखा कि ग्वाला शिवलिंग को वहीं छोड़कर चला गया था।


ज्योतिर्लिंग की स्थापना

रावण ने शिवलिंग को उठाने का बहुत प्रयास किया, लेकिन वह सफल नहीं हो सका। इस बीच, ब्रह्मा, भगवान विष्णु और अन्य देवताओं ने आकर शिवलिंग की पूजा की और उसे स्थापित कर दिया। मान्यता है कि वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग मनोकामनाओं को पूरा करने वाला है, इसलिए इसे कामना लिंग भी कहा जाता है।


वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का नामकरण

कहा जाता है कि भगवान शिव ने रावण के कटे सिरों को पुनः जोड़ दिया और उसे चिकित्सक बनकर मुक्ति दिलाई। इसी कारण इसे वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग कहा जाता है। यहां भगवान वैद्यनाथ का पूजन करने से भक्तों को रोगों से मुक्ति मिलती है।