देवशयनी एकादशी: चातुर्मास की शुरुआत और धार्मिक महत्व

देवशयनी एकादशी का महत्व
हर वर्ष आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी के रूप में मनाया जाता है। इस वर्ष यह विशेष तिथि 6 जुलाई, रविवार को आएगी। इस दिन भगवान विष्णु चार महीने की योग निद्रा के लिए क्षीर सागर में विश्राम करने के लिए चले जाते हैं। इसके साथ ही चातुर्मास की शुरुआत होती है, जो व्रत, तप, साधना और भक्ति के लिए सर्वोत्तम समय माना जाता है। जब भगवान विष्णु योग निद्रा में होते हैं, तब सृष्टि का संचालन भगवान शिव के हाथों में होता है।
चातुर्मास की अवधि
भगवान भोलेनाथ का प्रिय महीना सावन भी इसी समय आता है। इस बार चातुर्मास 6 जुलाई से शुरू होकर 2 नवंबर 2025 तक चलेगा।
आपको क्या करना चाहिए?
मान्यता है कि देवशयनी एकादशी से लेकर देवउठनी एकादशी तक भगवान विष्णु योग निद्रा में रहते हैं, और उनकी अनुपस्थिति में कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है। इसलिए विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन जैसे शुभ कार्यों को स्थगित कर दिया जाता है। इस दौरान मांस, मदिरा और तामसिक भोजन से बचना चाहिए। यदि संभव हो, तो चारों महीनों में जमीन पर सोना चाहिए।
चातुर्मास में क्या करें?
चातुर्मास के दौरान भगवान विष्णु के शयन काल में सात्विक भोजन करना और दान देना महत्वपूर्ण है। हल्का और सुपाच्य भोजन करना चाहिए। गरीबों और जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र और धन का दान करना शुभ माना जाता है। इस समय भगवान विष्णु की विशेष पूजा करनी चाहिए और उनके मंत्रों का जाप करना चाहिए।