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धूमावती जयंती: पूजा विधि और महत्व

धूमावती जयंती का पर्व हर साल ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। मां धूमावती, जो माता पार्वती का उग्र रूप हैं, को विपत्ति और आध्यात्मिक शक्ति का प्रतीक माना जाता है। इस लेख में हम जानेंगे मां धूमावती की पूजा विधि और उनके स्वरूप के बारे में। जानें कैसे इस दिन की पूजा से जीवन में सुख और शांति प्राप्त की जा सकती है।
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धूमावती जयंती: पूजा विधि और महत्व

धूमावती जयंती का महत्व

नई दिल्ली। आज भारत में धूमावती जयंती का उत्सव मनाया जा रहा है। यह पर्व हर वर्ष ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। धूमावती का अर्थ है 'धुएं के समान'। मां धूमावती, माता पार्वती का एक उग्र रूप मानी जाती हैं। देवी धूमावती सांसारिक मोह-माया से परे हैं और उन्हें विपत्ति, त्याग, आध्यात्मिक शक्ति और विवेक का प्रतीक माना जाता है। आइए, हम मां धूमावती की पौराणिक कथा और उनकी पूजा विधि के बारे में जानते हैं।


देवी धूमावती का स्वरूप

यह दिन विशेष रूप से माता धूमावती को समर्पित है। जो साधक तंत्र-मंत्र में रुचि रखते हैं, उनके लिए यह दिन महत्वपूर्ण होता है। मां धूमावती के स्वरूप में एक हाथ में तलवार है और दूसरे हाथ से वह आशीर्वाद दे रही हैं। देवी के बाल बिखरे हुए हैं और उनका स्वरूप काफी रौद्र और भयानक है। मां धूमावती ने सफेद रंग की साड़ी पहन रखी है। उनकी पूजा से पापियों का नाश होता है और व्यक्ति के जीवन से विपत्तियाँ दूर होती हैं। हालांकि, मां धूमावती की पूजा सुहागिन महिलाओं के लिए वर्जित मानी जाती है।


धूमावती देवी की पूजा विधि

इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें। स्नान के बाद साफ कपड़े पहनें और सूर्य देवता को अर्घ्य दें। पूरे घर को गंगाजल से शुद्ध करें। फिर देवी धूमावती को सफेद रंग के फूल और वस्त्र भेंट करें। पूजा में गंगाजल, अक्षत, कुमकुम, काले तिल, नींबू, सुपारी, दूर्वा और पंचमेवा अर्पित करें। इसके बाद देवी के समक्ष घी का दीपक जलाएं। इस दिन सफेद तिल का उपयोग करना शुभ माना जाता है। अंत में, मां धूमावती के स्रोत का पाठ करें और उनके आशीर्वाद प्राप्त करें।