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नवरात्र के पांचवे दिन मां स्कंदमाता की कथा का महत्व

नवरात्र के पांचवे दिन मां स्कंदमाता की पूजा का विशेष महत्व है। इस दिन मां की कथा का पाठ करने से जीवन में सकारात्मकता और सुख-शांति का संचार होता है। जानें कैसे तारकासुर के अत्याचारों से मुक्ति के लिए भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ और उनके पुत्र कार्तिकेय का जन्म हुआ। इस कथा के माध्यम से मां स्कंदमाता की महिमा को समझें और अपने जीवन में सुख-समृद्धि लाने के उपाय जानें।
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नवरात्र के पांचवे दिन मां स्कंदमाता की कथा का महत्व

दुख-दर्द से मुक्ति का मार्ग


दुख-दर्द से मुक्ति का मार्ग
नवरात्र का यह पांचवां दिन मां स्कंदमाता को समर्पित है। इस दिन मां की पूजा और स्कंदमाता की कथा का पाठ करना अत्यंत फलदायी माना जाता है। ऐसा करने से माता प्रसन्न होती हैं और आशीर्वाद देती हैं। स्कंदमाता को मातृत्व, शक्ति और ज्ञान का प्रतीक माना जाता है। इस दिन पूजा-पाठ करने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।


मां स्कंदमाता की व्रत कथा


प्राचीन ग्रंथों के अनुसार, एक समय धरती पर तारकासुर नामक एक शक्तिशाली राक्षस का वास था। अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए उसने भगवान ब्रह्मा की कठोर तपस्या की। ब्रह्मा जी उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर उसे वरदान मांगने के लिए कहा।


तारकासुर ने अमरता का वरदान मांगा, लेकिन ब्रह्मा जी ने उसे समझाया कि कोई भी अमर नहीं हो सकता। इसके बाद, तारकासुर ने चतुराई से योजना बनाई और ब्रह्मा जी से यह वरदान मांगा कि उसकी मृत्यु केवल भगवान शिव के पुत्र के हाथों ही हो। ब्रह्मा जी ने उसे यह वरदान दे दिया।


वरदान मिलने के बाद तारकासुर का अहंकार बढ़ गया और उसने तीनों लोकों में आतंक फैलाना शुरू कर दिया। उसने देवताओं, ऋषियों और मनुष्यों पर अत्याचार करना शुरू कर दिया। वह इतना शक्तिशाली हो गया कि स्वर्ग के राजा इंद्र को भी पराजित कर दिया।


इस स्थिति से परेशान होकर सभी देवता भगवान विष्णु के पास सहायता मांगने गए। भगवान विष्णु ने बताया कि तारकासुर को केवल भगवान शिव का पुत्र ही पराजित कर सकता है।


इसके बाद, देवताओं ने भगवान शिव से प्रार्थना की। भगवान शिव ने माता पार्वती से विवाह करने का निर्णय लिया। इस विवाह के फलस्वरूप, भगवान शिव और माता पार्वती के यहां कार्तिकेय का जन्म हुआ, जिसे स्कंद कुमार के नाम से जाना जाता है।