नारद मुनि की कथा: भगवान विष्णु और विश्वमोहिनी का अद्भुत प्रसंग
नारद मुनि की उत्सुकता
श्रीहरि के वचनों से अत्यंत प्रसन्न नारद मुनि अपनी ही दुनिया में खो गए। भले ही उनके सामने स्वयं नारायण उपस्थित थे, लेकिन उनके मन में विश्वमोहिनी का जादू छा गया था। जैसे कुछ लोग देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के लिए बकरों की बलि देते हैं, नारद मुनि भी भगवान विष्णु को एक बलि के बकरे से कम नहीं समझ रहे थे। वे राम का नाम लेकर अपने काम को साधने की कोशिश कर रहे थे। श्रीहरि ने अपने वचनों को पूरा भी नहीं किया था कि नारद मुनि पहले से ही आश्वस्त हो गए थे कि विश्वमोहिनी अब उनकी हो गई।
भगवान का संदेश
‘कुपथ माग रुज ब्याकुल रोगी।
बैद न देइ सुनहु मुनि जोगी।।
एहि बिधि हित तुम्हार मैं ठयऊ।
कहि अस अंतरहित प्रभु भयऊ।।’
इसका अर्थ है कि हे मुनि! सुनिए, यदि कोई रोगी कुपथ मांगता है, तो वैद्य उसे नहीं देता। इसी तरह, मैंने तुम्हारे हित के लिए यह निर्णय लिया है। यह कहकर भगवान विष्णु अंतर्ध्यान हो गए।
नारद मुनि की समझ
भगवान का संदेश स्पष्ट था कि मैं तुम्हें इस काम में फंसने की अनुमति नहीं दे सकता। यदि कोई रोगी खट्टा खाने की इच्छा करता है, तो कोई भी हितैषी वैद्य उसे ऐसा नहीं देगा। यदि कोई ऐसा करता है, तो वह वैद्य नहीं, बल्कि उसका शत्रु है।
नारद मुनि का अभिमान
नारद मुनि को इससे अधिक और कैसे समझाया जा सकता था। संसार में सबसे मूर्ख प्राणी भी इस बात को समझ सकता है। लेकिन नारद मुनि, जो ज्ञानी और विवेकी थे, इस बात को नहीं समझ पाए कि श्रीहरि क्या कहना चाह रहे हैं। माया का प्रभाव ही ऐसा होता है।
‘माया बिबस भए मुनि मूढ़ा।
समुझी नहिं हरि गिरा निगूढ़ा।।
गवने तुरत तहाँ रिषिराई।
जहाँ स्वयंबर भूमि बनाई।’
स्वयंवर की तैयारी
प्रभु की ओर से आश्वस्त होकर नारद मुनि वहाँ बैठे, जहाँ राजा स्वयंवर के लिए उपस्थित थे। सभी राजा अपने-अपने आसनों पर सूर्य की तरह चमक रहे थे। लेकिन नारद मुनि मन ही मन सोच रहे थे कि सबसे सुंदर तो मैं ही हूँ। उन्हें विश्वास था कि विश्वमोहिनी की नजर उन पर पड़ेगी और वह उन्हें वरमाला पहनाएगी।
भगवान की लीला
हालांकि भगवान विष्णु ने नारद मुनि को सबसे सुंदर नहीं, बल्कि सबसे कुरूप बना दिया था। अन्य लोग उन्हें संत के रूप में देख रहे थे, लेकिन शिवजी के दो गण इस रहस्य को जानते थे। वे नारद मुनि के आस-पास बैठे थे और उनकी सुंदरता की प्रशंसा कर रहे थे।
‘करहिं कूटि नारदहि सुनाई।? नीकि दीन्हि हरि सुंदरताई।।
रीझिहि राजकुअँरि छबि देखी।
इन्हहि बरिहि हरि जानि बिसेषी।’
विश्वमोहिनी का आगमन
अब विश्वमोहिनी स्वयंवर में प्रवेश कर रही थी, उसके हाथों में सुंदर वरमाला थी। लेकिन क्या वह नारद मुनि के इस हरि रूप को देख पाई? क्या नारद मुनि विश्वमोहिनी को सुंदर रूप में दिखे या कुरूप रूप में? इसके बारे में जानेंगे अगले अंक में।
क्रमशः
- सुखी भारती
