निर्जला एकादशी 2025: जलदान का महत्व और विशेषताएँ

निर्जला एकादशी का महत्व
निर्जला एकादशी, हिंदू धर्म की 24 एकादशियों में से सबसे कठिन और फलदायी मानी जाती है। यह ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। इस दिन व्रति जल का सेवन नहीं करते, इसलिए इसे 'निर्जला' कहा जाता है, जिसका अर्थ है 'बिना जल के'। इस व्रत को करने से साल भर की सभी एकादशियों का पुण्य प्राप्त होता है, जिससे यह उन लोगों के लिए विशेष महत्व रखती है जो अन्य एकादशियों का पालन नहीं कर पाते। हिंदू पंचांग के अनुसार, यह एकादशी वर्ष की सबसे कठिन मानी जाती है।
जलदान का महत्व
निर्जला एकादशी पर व्रति स्वयं जल नहीं पीते, लेकिन प्यासे को जल पिलाना या जल का दान करना अत्यंत पुण्यकारी माना जाता है। इस दिन जल से भरा घड़ा दान करना विशेष फलदायी होता है। यह दान जीवन में समृद्धि लाता है और पापों का नाश करता है।
दान करने योग्य वस्तुएं
इस दिन जल के साथ अन्य वस्तुओं का दान भी किया जा सकता है, जैसे:
- फल, मिठाई
- वस्त्र (विशेषकर सफेद या पीले रंग के)
- तांबे या पीतल का लोटा
- बांस का पंखा
- छाता
- स्वर्ण आभूषण (सामर्थ्य अनुसार)
इन वस्तुओं का दान करने से जीवन की समस्याएं दूर होती हैं और पितरों की आत्मा को शांति मिलती है। यह दान गर्मी के मौसम में जरूरतमंदों की मदद भी करता है, जिससे सामाजिक और आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होता है।
एकादशी तिथि
इस वर्ष एकादशी तिथि 5 जून को सुबह 3:00 बजे से शुरू होकर 6 जून को शाम 5:00 बजे समाप्त होगी। व्रत और दान मुख्य रूप से 6 जून को किया जाएगा।
यदि श्रद्धा और नियमपूर्वक व्रत और दान किया जाए, तो भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है और सभी दुखों से मुक्ति मिलती है।