निर्जला एकादशी: व्रत की विधि और महत्व

निर्जला एकादशी का महत्व
Nirjala Ekadashi vrat main pani pi sakte hai kya: हिंदू कैलेंडर के अनुसार, ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी के रूप में मनाया जाता है। इसे साल की सबसे कठिन और महत्वपूर्ण एकादशी माना जाता है। इस व्रत की विशेषता यह है कि इसमें पानी का सेवन नहीं किया जाता, इसलिए इसे निर्जला कहा जाता है।
व्रत का महत्व और तिथि
इस व्रत को श्रद्धा और नियमों के साथ करने से सभी एकादशी व्रतों का पुण्य एकत्रित होता है। इस वर्ष, यह पवित्र व्रत 6 जून 2025 को मनाया जाएगा। आइए, इस व्रत की पूजा विधि, नियम और आध्यात्मिक महत्व के बारे में जानते हैं।
पूजा विधि
निर्जला एकादशी का व्रत रखने के लिए, सुबह सूर्योदय से पहले स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें। इसके बाद भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लें, यह कहते हुए कि “मैं निर्जला एकादशी का व्रत पूर्ण निष्ठा से करूंगा/करूंगी।”
पूजा के लिए तुलसी पत्र, फल, कच्चा नारियल, मिश्री, पान, घी का दीपक, और धूप-अगरबत्ती तैयार करें। पूरे दिन भगवान विष्णु के भजन, कीर्तन, या विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें। रात में जागरण करें और अगले दिन द्वादशी तिथि के शुभ मुहूर्त में व्रत का पारण करें।
जल ग्रहण के नियम
इस व्रत में जल और अन्न का त्याग अनिवार्य है, लेकिन बीमार या बुजुर्ग व्यक्ति स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए जल ग्रहण कर सकते हैं।
निर्जला एकादशी में जल ग्रहण के नियम सख्त हैं। व्रत सूर्योदय से शुरू होकर अगले दिन सूर्योदय तक चलता है, और इस दौरान न तो पानी और न ही भोजन किया जाता है। यह कठोर व्रत भगवान विष्णु के प्रति अटूट भक्ति और आत्मसंयम का प्रतीक है।
आध्यात्मिक लाभ
शास्त्रों के अनुसार, इस व्रत को करने से भक्तों को मोक्ष की प्राप्ति और पापों से मुक्ति मिलती है। यह व्रत न केवल आध्यात्मिक उन्नति के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भक्तों को मानसिक और शारीरिक अनुशासन भी सिखाता है।