परिवर्तिनी एकादशी: जानें कब और कैसे मनाएं इस विशेष दिन को

परिवर्तिनी एकादशी का महत्व
परिवर्तिनी एकादशी का व्रत रखने से मिट जाते हैं सभी पाप
भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को परिवर्तिनी एकादशी कहा जाता है। इसे पद्मा एकादशी या जयंती एकादशी भी माना जाता है। इस दिन व्रत और पूजा करने से सभी पाप समाप्त हो जाते हैं। इसके अलावा, यह व्रत आर्थिक स्थिति को मजबूत करने और जीवन में सुख-समृद्धि लाने में सहायक होता है।
विशेष योग और पूजा
इस बार आयुष्मान और सौभाग्य योग के साथ कई शुभ संयोगों में परिवर्तिनी एकादशी मनाई जाएगी। इन योगों में लक्ष्मी नारायण जी की पूजा करने से सभी इच्छाएं पूरी होती हैं। एकादशी के दिन दान करना भी अत्यंत लाभकारी माना जाता है।
लक्ष्मी और नारायण की पूजा
एकादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित होती है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से देवी लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और साधकों पर अपनी कृपा बरसाती हैं। इस अवसर पर मंदिरों में लक्ष्मी नारायण जी की विशेष पूजा की जाती है और दान-पुण्य का कार्य भी किया जाता है।
महत्वपूर्ण तिथियाँ
एकादशी तिथि का आरंभ: 03 सितंबर को रात 03:53 बजे।
एकादशी तिथि का समापन: 04 सितंबर को सुबह 04:21 बजे।
परिवर्तिनी एकादशी का उत्सव
सनातन धर्म में उदया तिथि का महत्व है। सरल शब्दों में, सूर्योदय के बाद तिथि की गणना होती है। हालांकि, प्रदोष और निशा काल में होने वाली पूजा के लिए उदया तिथि से गणना नहीं होती है। इस प्रकार, 03 सितंबर को परिवर्तिनी एकादशी मनाई जाएगी।
एकादशी की दिव्यता
एकादशी भगवान विष्णु की पुत्री नहीं, बल्कि उनके शरीर से उत्पन्न एक दिव्य शक्ति हैं। पद्मपुराण के अनुसार, जब भगवान विष्णु राक्षस मुर से युद्ध कर रहे थे, तब उनके शरीर से एक कन्या उत्पन्न हुई, जिसने मुर का वध किया। विष्णु जी ने उस कन्या को एकादशी नाम दिया और कहा कि जो भी इसका उपवास करेगा, उसके सभी पाप समाप्त हो जाएंगे और उसे विष्णु लोक प्राप्त होगा।