पाकिस्तान में मानवाधिकारों का संकट: खैबर पख्तूनख्वा में आतंकवाद और दमन की बढ़ती घटनाएं

पाकिस्तान में मानवाधिकारों की स्थिति
पाकिस्तान मानवाधिकार: खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में हालात दिन-ब-दिन बिगड़ते जा रहे हैं। आतंकवादियों की बढ़ती गतिविधियों, जबरन वसूली और नागरिकों की आवाजाही पर प्रतिबंध ने आम लोगों के जीवन को कठिन बना दिया है। पाकिस्तान मानवाधिकार आयोग (एचआरसीपी) ने अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट किया है कि सरकार नागरिकों की सुरक्षा और स्वतंत्रता सुनिश्चित करने में पूरी तरह असफल रही है।
एचआरसीपी की रिपोर्ट का सार
एचआरसीपी द्वारा हाल ही में किए गए फैक्ट फाइंडिंग मिशन में यह सामने आया है कि प्रांत में हिंसा और विस्थापन की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं। इसके साथ ही, प्राकृतिक संसाधनों के दोहन और सुरक्षा अभियानों ने आम लोगों में भय का माहौल पैदा कर दिया है।
एचआरसीपी मिशन की गतिविधियाँ
एचआरसीपी मिशन की रिपोर्ट
मानवाधिकार आयोग (एचआरसीपी) की टीम ने 24 से 26 सितंबर तक खैबर पख्तूनख्वा में नागरिक समाज के प्रतिनिधियों और स्थानीय लोगों से बातचीत की। इस दौरान लोगों ने बढ़ती हिंसा, सुरक्षा अभियानों और प्रस्तावित खैबर पख्तूनख्वा खान एंड मिनरल्स एक्ट 2025 के बारे में अपनी चिंताएं व्यक्त कीं। स्थानीय निवासियों का कहना है कि संसाधनों का शोषण कर उन्हें उनके अधिकारों से वंचित किया जा रहा है।
आतंकवादियों का प्रभाव
आतंकियों का कब्जा और दहशत
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि कई क्षेत्रों में आतंकवादी संगठन बिना किसी रोक-टोक के सक्रिय हैं। वे स्थानीय लोगों से जबरन पैसे वसूल रहे हैं और विरोध करने वालों की बेरहमी से हत्या कर रहे हैं। इतना ही नहीं, आतंकियों ने दोपहर के समय लोगों की आवाजाही पर भी रोक लगा दी है। कुछ इलाकों में स्थिति इतनी गंभीर हो गई है कि सुरक्षा बलों ने वहां से काम करना तक बंद कर दिया है।
मानवाधिकार कार्यकर्ताओं पर हमले
मानवाधिकार कार्यकर्ताओं पर हमले
मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, पाकिस्तानी सेना पर गंभीर आरोप लगे हैं कि वह मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को चुप कराने के लिए किसी भी हद तक जा रही है। हाल ही में बलूच छात्र संगठन के पूर्व अध्यक्ष जुबैर बलूच और उनके साथी नासिर बलूच पाकिस्तानी सेना की छापेमारी में मारे गए। इस घटना की मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने कड़ी निंदा की है और इसे “राजकीय आतंकवाद का कृत्य” बताया है।
बलूच नेशनलिस्ट मूवमेंट और अन्य संगठनों ने कहा कि पाकिस्तान सरकार और सेना दोनों मिलकर मानवाधिकारों का गला घोंट रहे हैं। कार्यकर्ताओं का आरोप है कि नागरिकों की आवाज को दबाने और संसाधनों पर कब्जा जमाने के लिए व्यवस्थित तरीके से दमन किया जा रहा है।