पितृ पक्ष: जानें हमारे पूर्वजों का दिव्य निवास

पूर्वजों का दिव्य निवास
Pitru Paksha Special, नई दिल्ली: पितृ पक्ष का समय हमारे पूर्वजों को समर्पित होता है। इस अवधि में श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान का आयोजन किया जाता है, जिससे पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह क्रिया दुखों को दूर करने में सहायक होती है। भारतीय संस्कृति में पूर्वजों का सम्मान और उनके लिए तर्पण करना एक महत्वपूर्ण परंपरा है। इस दौरान श्रद्धालु अपने पितरों की आत्मा की शांति और आशीर्वाद के लिए विशेष पूजा करते हैं।
पितृ लोक: स्थान और प्रवेश
पितृ लोक एक दिव्य और आध्यात्मिक क्षेत्र है, जहां हमारे पूर्वजों की आत्माएं निवास करती हैं। यह भौतिक संसार से अलग और अदृश्य है। यहां आत्माएं शांति और पुण्य के साथ रहती हैं।
सनातन शास्त्रों के अनुसार, यमलोक मृत्यु लोक के ऊपर दक्षिण दिशा में लगभग 86,000 योजन की दूरी पर स्थित है। गरुड़ पुराण में कहा गया है कि यदि आत्मा अर्ध गति में रहती है, तो वह लगभग 100 वर्षों तक मृत्यु और पुनर्जन्म के बीच की स्थिति में रहती है।
चंद्रमा के ऊर्ध्व भाग में पितृ लोक
कहा जाता है कि चंद्रमा के ऊर्ध्व भाग में भी पितृ लोक है। ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार, सूर्य की प्रमुख किरण अमा के माध्यम से पितर पृथ्वी लोक पर आते हैं और श्रद्धालुओं के तर्पण और पिंडदान को ग्रहण करते हैं।
कौन कर सकता है पितृ लोक में प्रवेश
पितृ लोक में भौतिक रूप से कोई नहीं जा सकता। यहां प्रवेश श्रद्धा, भक्ति और कर्मयोग के माध्यम से होता है। जब हम पितृ पक्ष में तर्पण, श्राद्ध और पिंडदान करते हैं, तो हमारे द्वारा किया गया कर्म पितरों तक पहुंचता है। यह उनके लिए शांति और संतोष का कारण बनता है।