पितृ पक्ष: मृत्यु के बाद 10 दिनों तक पिंडदान का महत्व

पितरों के लिए पिंडदान का महत्व
पितृ पक्ष के दौरान पिंडदान का महत्व
धार्मिक मान्यता के अनुसार, मृत्यु के बाद 10 दिनों तक मृतकों के लिए पिंडदान करना आवश्यक होता है। गरुड़ पुराण में भगवान विष्णु और उनके वाहन गरुड़ के बीच संवाद के माध्यम से जीवन के नियम, ज्ञान और तप से संबंधित संदेश दिए गए हैं। इस पुराण में मृत्यु के बाद के संस्कार और आत्मा के विषय में भी चर्चा की गई है।
गरुड़ पुराण में बताया गया है कि मृत्यु के बाद अंतिम संस्कार से लेकर पिंडदान और तेरहवीं तक का क्या महत्व है। आइए जानते हैं कि क्यों 10 दिनों तक पिंडदान किया जाता है।
मृत व्यक्ति की आत्मा का 13 दिनों तक रहना
गरुड़ पुराण के अनुसार, मृत व्यक्ति की आत्मा 13 दिनों तक अपने परिवार के सदस्यों के बीच रहती है। इस दौरान आत्मा भूख और प्यास से व्याकुल रहती है।
इस समय के दौरान, 10 दिनों तक किए गए पिंडदान से आत्मा का सूक्ष्म शरीर बनता है, जो एक अंगूठे के आकार का होता है। पुराण के पहले अध्याय में कहा गया है कि मृत्यु के बाद आत्मा को पाप और पुण्य के अनुसार एक प्रेत शरीर प्राप्त होता है।
प्रेत योनि से मुक्ति का मार्ग
पिंडदान के पहले दिन से सिर का निर्माण होता है, दूसरे दिन गर्दन और कंधे, तीसरे दिन हृदय, चौथे दिन पीठ, पांचवें दिन नाभि, छठे और सातवें दिन कमर और निचला भाग, आठवें दिन पैर, और नौवें तथा दसवें दिन भूख-प्यास का अनुभव होता है।
इस पिंडदान के माध्यम से आत्मा को 11वें और 12वें दिन भोजन प्राप्त होता है। तेरहवीं के दिन जब परिजन 13 ब्रह्मणों को भोजन कराते हैं, तब आत्मा को प्रेत योनि से मुक्ति मिलती है।
पिंडदान के विभिन्न प्रकार
- मृत्यु के बाद का पिंडदान: यह सबसे महत्वपूर्ण होता है।
- 16 पिंडदान: मृत्यु के 11वें दिन से शुरू होकर 12वें मास तक कुल 16 पिंडदान किए जाते हैं।
- गया में पिंडदान: यह जीवन में एक बार किया जाता है।
- वार्षिक पिंडदान: हर वर्ष पितृपक्ष में पूर्वजों के लिए पिंडदान किया जाता है।
- पितृपक्ष: इस दौरान पितरों के लिए पिंडदान करना शुभ माना जाता है।
- अन्य अवसर: वर्ष में कई विशेष दिन होते हैं जब पिंडदान किया जा सकता है।