पितृ पक्ष में जल अर्पित करने की विधि और महत्व

पितरों को जल अर्पित करने का महत्व
पितरों को जल अर्पित करने से आत्मा को शांति मिलती है
पितृ पक्ष हर साल भाद्रपद शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से शुरू होता है और यह आश्विन महीने की अमावस्या तक चलता है। यह समय पितरों को समर्पित होता है, जिसमें उन्हें प्रसन्न करने के लिए विभिन्न विधियाँ अपनाई जाती हैं। जल अर्पित करना इस दौरान एक महत्वपूर्ण क्रिया मानी जाती है।
पितरों को जल अर्पित करने से उनकी आत्मा को तृप्ति और मुक्ति मिलती है, साथ ही व्यक्ति को उनके आशीर्वाद की प्राप्ति होती है। इसलिए, जल अर्पित करने की विधि का सही पालन करना आवश्यक है, अन्यथा पितर नाराज हो सकते हैं और व्यक्ति को पितृ दोष का सामना करना पड़ सकता है।
जल अर्पित करने के नियम और समय
मान्यता है कि अंगूठे से जल अर्पित करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, हथेली का वह भाग जहाँ अंगूठा होता है, उसे पितृ तीर्थ कहा जाता है। पितरों को जल तर्पण करने का सबसे उत्तम समय 11:30 बजे से 12:30 बजे तक माना जाता है।
तर्पण की विधि
- स्नान और दिशा: सबसे पहले पवित्र नदी में स्नान करें या घर पर स्नान करें। इसके बाद दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके बैठें।
- सामग्री तैयार करें: एक तांबे के लोटे में सादा जल, काला तिल, जौ, गंगाजल, दूध और सफेद फूल मिलाकर तर्पण के लिए तैयार करें।
- हाथों में कुशा लें: अपने दाहिने हाथ में कुशा (पवित्र घास) लें।
- जल अर्पित करें: लोटे को सिर के ऊपर उठाकर अंगूठे और तर्जनी के बीच से धीरे-धीरे जल अर्पित करें। इसे पितृ तीर्थ कहा जाता है।
- मंत्र जाप करें: जल अर्पित करते समय पितरों के मंत्र का उच्चारण करें, जैसे 'ओम पितृ देवतायै नम:'।
- तीन बार जल दें: पिता, पितामह और प्रपितामह के नाम लेकर तीन-तीन अंजलि जल अर्पित करें। कुल मिलाकर पितरों को कम से कम 11 बार जल अर्पित करना चाहिए।
ध्यान रखने योग्य बातें
- समय: कुतप वेला (मध्य दोपहर) में तर्पण देना सबसे उत्तम माना जाता है।
- आहार: इस अवधि में प्याज, लहसुन, मांस और मदिरा जैसे तामसिक भोजन से बचें।
- आशीर्वाद: जल अर्पित करने के बाद घर की सुख-शांति के लिए पितरों का आशीर्वाद लें।
- दान: सामर्थ्य अनुसार अनाज और धन जरूरतमंदों को दान करें, इससे पितर प्रसन्न होते हैं।