पुरी में भगवान जगन्नाथ की भव्य रथ यात्रा का आरंभ
27 जून को ओडिशा के पुरी में भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा का आरंभ हो रहा है, जो 12 दिनों तक चलेगी। इस यात्रा में भगवान जगन्नाथ अपनी बहन सुभद्रा और भाई बलभद्र के साथ गुंडिचा मंदिर जाएंगे। रथ यात्रा की तैयारी महीनों पहले से शुरू होती है, जिसमें कई धार्मिक रस्में और अनुष्ठान शामिल होते हैं। जानें इस यात्रा के रथों के नाम, रस्सियों का महत्व और इसकी ऐतिहासिकता के बारे में।
Jun 27, 2025, 10:59 IST
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भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा का आरंभ
आज, 27 जून को ओडिशा के पुरी में भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा की शुरुआत हो रही है। यह भव्य यात्रा जगन्नाथ मंदिर से प्रारंभ होकर गुंडिचा मंदिर तक जाएगी। धार्मिक मान्यता के अनुसार, हर साल भगवान जगन्नाथ अपनी बहन सुभद्रा और भाई बलभद्र के साथ गुंडिचा मंदिर में अपनी मौसी के घर जाते हैं। रथ यात्रा शुरू होने से पहले, हजारों श्रद्धालु मंदिर के सिंह द्वार पर पहुंचकर गर्भगृह में विराजमान भगवान बलभद्र, देवी सुभद्रा और भगवान जगन्नाथ के युवा रूप के दर्शन करते हैं।
रथ यात्रा की अवधि
कब तक चलेगी रथ यात्रा
यह रथ यात्रा कुल 12 दिनों तक चलेगी और इसका समापन 08 जुलाई 2025 को नीलाद्रि विजय के साथ होगा। इस दौरान भगवान पुनः अपने मूल मंदिर में लौटेंगे। रथ यात्रा की तैयारियां महीनों पहले से शुरू कर दी जाती हैं, जिसमें कई धार्मिक रस्में, अनुष्ठान और विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
रथों के नाम और रस्सियां
रस्सियों के नाम
भगवान के तीन रथों को खींचने वाली रस्सियों के विशेष नाम होते हैं। भगवान जगन्नाथ के 16 पहियों वाले रथ को 'नंदीघोष' कहा जाता है, और इसकी रस्सी का नाम शंखाचुड़ा नाड़ी है।
भगवान बलभद्र के रथ में 14 पहिए होते हैं, जिसे तालध्वज कहा जाता है। इस रथ की रस्सियों को बासुकी के नाम से जाना जाता है।
देवी सुभद्रा के रथ में 12 पहिए होते हैं, जिसे दर्पदलन कहा जाता है। इसमें लगी रस्सी को स्वर्णचूड़ा नाड़ी के नाम से जाना जाता है।
ये रस्सियां केवल रथ खींचने का साधन नहीं हैं, बल्कि इन्हें छूना भी सौभाग्य की बात मानी जाती है।
रथ यात्रा की ऐतिहासिकता
रथ यात्रा की शरूआत
स्कंद पुराण के अनुसार, एक दिन देवी सुभद्रा ने भगवान जगन्नाथ से नगर देखने की इच्छा व्यक्त की। तब भगवान जगन्नाथ और बलभद्र ने उन्हें रथ पर बिठाकर नगर भ्रमण कराया। इस दौरान वे अपनी मौसी गुंडिचा के घर गए और वहां 7 दिनों तक रुके। तभी से इस रथ यात्रा की परंपरा की शुरुआत हुई।