पौष नवमी: महत्व, पूजा विधि और पौराणिक कथा
पौष नवमी, जो पौष महीने का नौवां दिन है, हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है। इस दिन सूर्य की पूजा, दान और स्नान का महत्व है। जानें पौष नवमी का अर्थ, पूजा विधि और इससे जुड़ी पौराणिक कथा। इस दिन किए गए धार्मिक अनुष्ठान से विशेष फल की प्राप्ति होती है।
| Dec 29, 2025, 12:49 IST
पौष नवमी का महत्व
आज पौष नवमी है, जो पौष महीने का नौवां दिन होता है। यह दिन शुक्ल पक्ष या कृष्ण पक्ष में आता है और हिंदू धर्म में इसका विशेष महत्व है। इस दिन सूर्य की पूजा, दान और स्नान का विशेष महत्व होता है। आइए जानते हैं पौष नवमी व्रत का महत्व और पूजा विधि के बारे में।
पौष नवमी का अर्थ और महत्व
हिंदू पंचांग के अनुसार, पौष महीना धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह सूर्य देव की पूजा के लिए समर्पित है। इस साल पौष माह की शुरुआत 5 दिसंबर 2025 को हुई थी। यह माह शुभ फल देने वाला माना जाता है, लेकिन कुछ नियम और वर्जित कार्य हैं जिन्हें इस दौरान नहीं करना चाहिए। पौष नवमी 29 दिसंबर को है और यह देवी दुर्गा से संबंधित मानी जाती है। इस दिन सूर्य देव की उपासना, स्नान, दान और पितृ तर्पण से शुभ फल की प्राप्ति होती है।
पौष मास का नाम धनुर्मास
पौष मास को धनुर्मास भी कहा जाता है, क्योंकि इस दौरान सूर्य धनु राशि में होते हैं। पौष नवमी एक शुभ तिथि है, जो धार्मिक अनुष्ठानों के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती है, जिसमें भगवान सूर्य और देवी दुर्गा की पूजा की जाती है।
पौष नवमी से जुड़ी पौराणिक कथा
पंडितों के अनुसार, पौष नवमी से जुड़ी एक कथा है जिसमें एक गरीब ब्राह्मण कन्या और पीपल वृक्ष का उल्लेख है। एक निर्धन ब्राह्मण अपनी गुणवान बेटी के साथ रहता था, लेकिन कन्या के विवाह में बाधाएं आ रही थीं। एक दिन एक साधु उनके घर आए और कन्या को सलाह दी कि वह निःस्वार्थ सेवा करे। कन्या ने सेवा की और पीपल की परिक्रमा की, जिससे उसकी बाधाएं दूर हुईं। इस दिन की पूजा से महिला के पति को पुनर्जीवन मिला, जिससे यह व्रत सभी कष्टों को दूर करने वाला माना जाता है।
पौष महीने में ध्यान रखने योग्य बातें
शास्त्रों के अनुसार, पौष महीने में सूर्य धनु राशि में प्रवेश करते हैं, जिसे धनु संक्रांति कहा जाता है। इस दौरान विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश और नए व्यवसाय की शुरुआत जैसे मांगलिक कार्य वर्जित माने जाते हैं। इस महीने में प्रतिदिन शरीर की तेल मालिश करने से बचना चाहिए। तिल का दान करना भी शुभ माना जाता है। इस दौरान नए अनाज का सेवन देवताओं को भोग लगाए बिना नहीं करना चाहिए। पौष महीने में ठंडी चीजों का सेवन करने से बचना चाहिए।
पौष नवमी तिथि पर मंत्रों का जाप
- ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय नमः।।
- ॐ घृणिः सूर्य आदित्यः क्लीं ॐ।।
- ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय सहस्रकिरणराय मनोवांछित फलम् देहि देहि स्वाहा।।
पौष मास से जुड़ी मान्यताएं
पौष विक्रम संवत का दसवां महीना है। इस मास में हेमंत ऋतु होने से ठंड अधिक होती है। धर्म ग्रंथों के अनुसार, इस मास में सूर्य की उपासना करनी चाहिए। पौष मास में सूर्य को अर्ध्य देने का विशेष महत्व है। आदित्य पुराण के अनुसार, पौष माह के हर रविवार को सूर्य को अर्ध्य देना चाहिए।
पौष मास का महत्व
पंडितों के अनुसार, पौष मास भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण को प्रिय है। इस महीने में इनकी पूजा करने से विशेष फल मिलता है। इस दिन पवित्र नदियों में अन्न, स्नान, ऊनी वस्त्र, तिल और गुड़ का दान करने से पापों का नाश होता है।
