प्रदोष व्रत: जानें इसके विभिन्न प्रकार और महत्व

प्रदोष व्रत का महत्व और नाम
प्रदोष व्रत का महत्व
प्रदोष व्रत भगवान शिव को समर्पित होता है और इसे हर महीने की त्रयोदशी तिथि पर मनाया जाता है, जो कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष दोनों में आता है। इस प्रकार, साल में कुल 24 प्रदोष व्रत होते हैं। मान्यता है कि इस व्रत के माध्यम से व्यक्ति के सभी दोष और दुख दूर होते हैं। प्रदोष काल में, जो सूर्यास्त के समय होता है, भगवान शिव की पूजा करना विशेष फलदायी माना जाता है। हर प्रदोष व्रत का अपना एक विशेष नाम और महत्व होता है।
प्रदोष व्रत की पूजा विधि
पूजा विधि
- प्रदोष व्रत करने वाले व्यक्तियों को द्वादशी की रात से ही शुद्धता और ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।
- त्रयोदशी तिथि पर प्रात: स्नान करके भगवान शिव का ध्यान करना चाहिए और शिवलिंग पर जलाभिषेक करना चाहिए।
- ऊं नम: शिवाय का जाप करना चाहिए।
- यदि संभव हो तो उपवास का संकल्प लें और दिनभर निराहार रहें।
- सूर्यास्त के बाद स्नान करके भगवान शिव की विधिपूर्वक पूजा करें।
- पूजा करते समय उत्तर या पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठें।
- भगवान शिव को पुष्प, बेलपत्र, पंचामृत, दूध आदि से पूजा करें।
- जलाभिषेक करें और शिव मंत्रों का पाठ करें।
- भजन आरती के बाद भगवान को भोग लगाएं और प्रसाद बांटें।
- पूजा के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराएं और उन्हें दान दक्षिणा दें।
प्रदोष व्रत के प्रकार
प्रदोष व्रत के प्रकार
- सोम प्रदोष व्रत: सोमवार को भगवान शिव और चंद्र देव का दिन माना जाता है। इस दिन व्रत रखने से मानसिक सुख और चंद्र दोष समाप्त होता है।
- भौम प्रदोष व्रत: मंगलवार को संतान सुख और स्वास्थ्य संबंधी कष्टों से मुक्ति मिलती है।
- बुध प्रदोष व्रत: बुधवार को वाणी में शुभता और बौद्धिकता में वृद्धि होती है।
- गुरु प्रदोष व्रत: बृहस्पतिवार को ज्ञान और आध्यात्मिक चेतना की प्राप्ति होती है।
- शुक्र प्रदोष व्रत: शुक्रवार को आर्थिक कठिनाइयों से मुक्ति और प्रेम की प्राप्ति होती है।
- शनि प्रदोष व्रत: शनिवार को शनि देव का आशीर्वाद प्राप्त होता है और शनि दोष दूर होते हैं।
- रवि प्रदोष व्रत: रविवार को भगवान शिव और सूर्य देव की पूजा से यश और कीर्ति की प्राप्ति होती है।
प्रदोष व्रत की कथा
प्रदोष व्रत की कथा
प्रदोष व्रत से जुड़ी कई कथाएं प्रचलित हैं। एक कथा के अनुसार, चंद्रमा को श्रापवश क्षय रोग होता है, जिससे उसकी रोशनी कम होने लगती है। चंद्र देव भगवान शिव की भक्ति करते हैं और अपने कष्ट से मुक्ति की प्रार्थना करते हैं। भगवान शिव उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें श्राप से मुक्त करते हैं। जिस दिन चंद्रमा को मुक्ति मिलती है, वह त्रयोदशी तिथि होती है, इसलिए इस दिन को प्रदोष कहा जाता है।