प्रदोष व्रत: भगवान शिव की पूजा का महत्व और विधि
प्रदोष व्रत भगवान शिव को समर्पित एक महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान है, जो विशेष रूप से कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन भक्त उपवास रखते हैं और शिव की पूजा करते हैं, जिससे पापों का नाश और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। 4 अक्टूबर को होने वाले इस व्रत का महत्व और पूजा विधि जानें, साथ ही विशेष उपायों के बारे में भी जानकारी प्राप्त करें।
Oct 3, 2025, 14:27 IST
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प्रदोष व्रत का महत्व
प्रदोष व्रत भगवान शिव को समर्पित एक महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान है। हिंदू धर्म में इस व्रत का विशेष स्थान है। यह व्रत कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को पहला प्रदोष व्रत होता है, जबकि दूसरा शुक्ल पक्ष में मनाया जाता है। इस दिन भक्त भगवान शिव की पूजा करते हैं, जिससे उनके पापों का नाश होता है और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। श्रद्धालु इस अवसर पर उपवास रखते हैं और शिव चालीसा, रुद्राष्टक, तथा महामृत्युंजय मंत्र का जाप करते हैं। प्रदोष व्रत को आध्यात्मिक शांति और मोक्ष की प्राप्ति का मार्गदर्शक माना जाता है। शनिवार को पड़ने वाला प्रदोष व्रत 'शनि प्रदोष व्रत' के नाम से जाना जाता है। इस वर्ष, 4 अक्टूबर को प्रदोष व्रत का आयोजन होगा। मान्यता है कि इस व्रत को करने से भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है और शनि दोष से मुक्ति मिलती है।
पूजा का मुहूर्त
पूजा का मुहूर्त
त्रयोदशी तिथि 4 अक्टूबर 2025 को शाम 5:09 बजे प्रारंभ होगी और 5 अक्टूबर 2025 को दोपहर 3:03 बजे समाप्त होगी। इस दिन पूजा का शुभ समय शाम 5:29 बजे से लेकर रात 7:55 बजे तक रहेगा। इसके अलावा, इस दिन द्विपुष्कर योग भी बन रहा है, जो सुबह 6:13 बजे से शुरू होगा और 9:09 बजे समाप्त होगा। इस योग में पूजा करने से दोगुना फल प्राप्त होता है।
पूजा विधि
जानें पूजा-विधि
शनि प्रदोष व्रत के दिन सुबह स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें। इसके बाद घर के मंदिर की सफाई करें और शिव परिवार की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। घी का दीपक जलाकर फल, फूल, धूप और नैवेद्य अर्पित करें। फिर शिव मंत्रों का जाप करें और आरती करें। शाम के मुहूर्त में पुनः स्नान करके शिव मंदिर जाएं। शिवलिंग पर जल, बिल्वपत्र, आक के फूल, धतूरा, भांग, शहद, गन्ना आदि अर्पित करें। इसके बाद शनि प्रदोष व्रत की कथा सुनें और 'ओम नमः शिवाय' का जाप करें। पूजा के अंत में क्षमा-यचना अवश्य करें। अंत में, पीपल के वृक्ष के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाकर शनिदेव की पूजा करें।
विशेष उपाय
विशेष उपाय करें
शिवलिंग पर जलाभिषेक: जल में काला तिल और शमी की पत्ती मिलाकर शिवलिंग पर चढ़ाएं। इसके बाद शिव चालीसा का पाठ करें। यह उपाय शनि के अशुभ प्रभाव को कम करता है।
बेलपत्र अर्पित करें: प्रदोष व्रत के दिन शिवलिंग पर 108 बेलपत्र चढ़ाना अत्यंत शुभ माना जाता है। इसके साथ ही उड़द दाल, काले वस्त्र, जूते और शनिदेव से संबंधित वस्तुओं का दान करें।