बकरीद: त्याग और भक्ति का पर्व, जानें इसकी विशेषताएँ
बकरीद का महत्व
बकरीद, जिसे ईद-उल-अजहा के नाम से भी जाना जाता है, इस्लाम धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार है। यह त्यौहार त्याग और भक्ति का प्रतीक माना जाता है, जो अल्लाह के प्रति समर्पण की भावना को दर्शाता है। भारत में, बकरीद 2025 में 7 जून को मनाई जाएगी, जबकि सऊदी अरब, ओमान और इंडोनेशिया जैसे देशों में इसे 6 जून को मनाया जाएगा। इस दिन मुसलमान नमाज अदा करते हैं, जानवरों की कुर्बानी देते हैं और जरूरतमंदों में मांस बांटते हैं.
हजरत इब्राहीम की कुर्बानी
हजरत इब्राहीम से मांगी गई कुर्बानी
बकरीद की कुर्बानी हजरत इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) की परीक्षा की याद में दी जाती है। कहा जाता है कि अल्लाह ने हजरत इब्राहीम से उनके बेटे इस्माईल की कुर्बानी मांगी थी। वे इस आज्ञा का पालन करने के लिए तैयार हो गए, लेकिन जब उन्होंने अपने बेटे को कुर्बान करने का प्रयास किया, तो अल्लाह ने एक करिश्मे के तहत उनके बेटे की जगह एक दुम्बा भेज दिया। इस घटना से यह संदेश मिलता है कि अल्लाह सच्चे दिल से की गई नीयत और भक्ति को स्वीकार करता है.
आत्मा की शुद्धता का प्रतीक
आत्मा की शुद्धता का प्रतीक
धार्मिक विद्वानों का मानना है कि बकरीद केवल एक धार्मिक रस्म नहीं है, बल्कि यह आत्मा की शुद्धता और अल्लाह के प्रति पूर्ण समर्पण का प्रतीक है। कुर्बानी से पहले अपने भीतर के अहंकार, स्वार्थ और द्वेष को त्यागना ही असली इबादत है। बकरीद की तारीख हर वर्ष इस्लामी चंद्र कैलेंडर के अनुसार तय होती है और यह जिल-हिज्जा की 10 तारीख को मनाई जाती है। चांद पर आधारित होने के कारण तारीख हर साल बदलती रहती है और देशों में एक दिन का अंतर भी हो सकता है.
इस दिन मुसलमान नए कपड़े पहनते हैं, ईद की नमाज अदा करते हैं और फिर कुर्बानी की रस्म निभाते हैं। कुर्बानी का मांस तीन हिस्सों में बांटा जाता है: एक हिस्सा खुद के लिए, एक रिश्तेदारों के लिए और तीसरा गरीबों व जरूरतमंदों के लिए.
