बांके बिहारी मंदिर में इत्र सेवा का महत्व और कारण

बांके बिहारी मंदिर: एक आध्यात्मिक स्थल
वृंदावन का बांके बिहारी मंदिर भगवान श्रीकृष्ण के अनुयायियों के लिए एक पवित्र स्थल है। यहां भगवान बांके बिहारी के बाल स्वरूप की पूजा की जाती है, और इसकी अनूठी परंपराएं इसे विशेष बनाती हैं। इनमें से एक प्रमुख परंपरा इत्र सेवा है, जिसमें ठाकुर जी को सुगंधित इत्र अर्पित किया जाता है। यह माना जाता है कि बांके बिहारी की मूर्ति में भगवान श्रीकृष्ण और राधारानी दोनों के भाव समाहित हैं।
इत्र सेवा का महत्व
बांके बिहारी मंदिर में इत्र सेवा भगवान श्रीकृष्ण के प्रति भक्ति और प्रेम का प्रतीक है। श्रीकृष्ण को रसमय और मनमोहक स्वरूप का प्रतीक माना जाता है, जो सौंदर्य, प्रेम, और आनंद से भरा होता है। इत्र की सुगंध ठाकुर जी के स्वरूप को और भी आकर्षक बनाती है। यह सेवा भगवान को प्रसन्न करने और श्रद्धा व्यक्त करने का एक तरीका है।
इत्र सेवा का आयोजन
मंदिर में इत्र सेवा का आयोजन भक्तों द्वारा किया जाता है, जिसमें सुगंधित इत्र को ठाकुर जी के चरणों में अर्पित किया जाता है या उनके विग्रह पर छिड़का जाता है।
इत्र सेवा का कारण
क्यों की जाती है इत्र सेवा?
इत्र सेवा का संबंध बांके बिहारी जी के बाल स्वरूप और उनकी लीलाओं से है। श्रीकृष्ण को वृंदावन में गोपियों के साथ रासलीला करने वाले स्वरूप के रूप में जाना जाता है। पुष्प और उनकी सुगंध उनके प्रिय हैं, इसलिए भक्त इत्र के माध्यम से प्रभु को सुगंध अर्पित करते हैं।
मंदिर की मान्यता के अनुसार, बांके बिहारी जी का स्वरूप इतना मनमोहक है कि उनकी एक झलक भक्तों को मंत्रमुग्ध कर देती है। इत्र की सुगंध इस आकर्षण को और बढ़ाती है, जिससे भक्तों का मन और अधिक भक्ति में लीन हो जाता है। यह सेवा स्वामी हरिदास जी की परंपरा से भी जुड़ी है।
शास्त्रों में इत्र का महत्व
क्या कहते हैं शास्त्र?
हिंदू धर्म के ग्रंथों में सुगंध और इत्र का उपयोग भगवान की पूजा में विशेष महत्व रखता है। श्रीमद्भागवत पुराण में श्रीकृष्ण की लीलाओं का वर्णन करते हुए बताया गया है कि वे सुगंधित पुष्पों और चंदन से प्रसन्न होते हैं।
इसके अलावा, विष्णु पुराण और पद्म पुराण में भी भगवान विष्णु और उनके अवतारों की पूजा में सुगंधित द्रव्यों के उपयोग का उल्लेख है।
इत्र सेवा का समय
किस समय की जाती है इत्र सेवा?
बांके बिहारी मंदिर में इत्र सेवा का आयोजन विशेष अवसरों पर और भक्तों की इच्छा के अनुसार किया जाता है। यह सेवा आमतौर पर शृंगार आरती या राजभोग आरती के समय की जाती है।