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बुध प्रदोष व्रत: महत्व और पूजा विधि

20 अगस्त को बुध प्रदोष व्रत का आयोजन किया जाएगा, जो सभी दुखों और दोषों से मुक्ति दिलाने वाला माना जाता है। इस दिन भगवान शिव की विशेष कृपा भक्तों पर बनी रहती है। जानें इस व्रत का महत्व, पूजा विधि और इस बार के विशेष संयोग के बारे में।
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बुध प्रदोष व्रत: महत्व और पूजा विधि

प्रदोष व्रत का महत्व

प्रदोष व्रत का आयोजन 20 अगस्त को किया जाएगा। यह व्रत सभी दुखों और दोषों से मुक्ति दिलाने वाला माना जाता है। इस दिन भगवान शिव की विशेष कृपा भक्तों पर बनी रहती है। प्रदोष व्रत त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है, जो हर महीने दो बार होती है, एक बार कृष्ण पक्ष में और दूसरी बार शुक्ल पक्ष में। यह व्रत सूर्यास्त के समय, जिसे प्रदोष काल कहा जाता है, किया जाता है।


बुध प्रदोष व्रत की तिथि

पंचांग के अनुसार, भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि 20 अगस्त, बुधवार को दोपहर 1:58 बजे शुरू होगी और 21 अगस्त को दोपहर 12:44 बजे समाप्त होगी। हालांकि, प्रदोष पूजा का मुहूर्त 20 अगस्त को है।


सिद्धि योग और पुनर्वसु नक्षत्र

इस बार बुध प्रदोष व्रत के दिन सिद्धि योग और पुनर्वसु नक्षत्र का संयोग बन रहा है। सिद्धि योग प्रात: से लेकर शाम 6:13 बजे तक रहेगा, जबकि पुनर्वसु नक्षत्र प्रात: से लेकर रात 12:27 बजे तक रहेगा।


प्रदोष व्रत की पूजा विधि

प्रदोष व्रत के दिन भक्त सुबह जल्दी उठकर स्नान करते हैं और भगवान शिव की पूजा करते हैं। पूरे दिन उपवास रखा जाता है और सूर्यास्त के बाद फलाहार किया जाता है। इस दिन शिवलिंग पर जल, बेलपत्र, धतूरा और अन्य पूजन सामग्री अर्पित की जाती है। महामृत्युंजय मंत्र और शिव तांडव स्तोत्र का जाप भी किया जाता है।