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ब्रह्मा जी की सृष्टि की अद्भुत कथा

इस लेख में ब्रह्मा जी की सृष्टि की अद्भुत कथा का वर्णन किया गया है। जानें कैसे ब्रह्मा जी ने कमल के छिद्र से सृष्टि की रचना की और वेदों का निर्माण किया। यह कहानी न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह मानवता की उत्पत्ति और विकास के बारे में भी गहन जानकारी प्रदान करती है।
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ब्रह्मा जी की सृष्टि की अद्भुत कथा

ब्रह्मा जी की खोज

ब्रह्मा जी ने आदि देवता की खोज में कमल की नाल के छिद्र में प्रवेश किया और जल में अंत तक खोज की। लेकिन उन्हें भगवान कहीं नहीं मिले। इस खोज में उन्होंने सौ वर्ष व्यतीत किए। अंततः, ब्रह्मा जी ने समाधि ली और अपने अंतःकरण में अपने अधिष्ठान को प्रकट होते देखा। शेष जी की शैय्या पर पुरुषोत्तम भगवान अकेले लेटे हुए थे। ब्रह्मा जी ने उनसे सृष्टि रचना का आदेश प्राप्त किया और कमल के छिद्र से बाहर निकलकर कमल कोष पर विराजमान हो गए। इसके बाद उन्होंने संसार की रचना पर विचार करना शुरू किया।


सृष्टि का निर्माण

ब्रह्मा जी ने कमल कोष के तीन विभाग भूः, भुवः, स्वः में विभाजित किया। उन्होंने सृष्टि रचने का दृढ़ संकल्प लिया और उनके मन से मरीचि, नेत्रों से अत्रि, मुख से अंगिरा, कान से पुलस्त्य, नाभि से पुलह, हाथ से कृतु, त्वचा से भृगु, प्राण से वशिष्ठ, अंगूठे से दक्ष और गोद से नारद उत्पन्न हुए। इसी प्रकार उनके दायें स्तन से धर्म, पीठ से अधर्म, हृदय से काम, दोनों भौंहों से क्रोध, मुख से सरस्वती, नीचे के ओंठ से लोभ, लिंग से समुद्र और छाया से कर्दम ऋषि प्रकट हुए। इस प्रकार सम्पूर्ण जगत ब्रह्मा जी के मन और शरीर से उत्पन्न हुआ।


वेदों और उपवेदों की रचना

एक बार ब्रह्मा जी ने एक घटना से लज्जित होकर अपना शरीर त्याग दिया। उनके त्यागे हुए शरीर को दिशाओं ने कुहरा और अंधकार के रूप में ग्रहण कर लिया। इसके बाद ब्रह्मा जी के पूर्व वाले मुख से ऋग्वेद, दक्षिण वाले मुख से यजुर्वेद, पश्चिम वाले मुख से सामवेद और उत्तर वाले मुख से अथर्ववेद की ऋचाएँ निकलीं। तत्पश्चात उन्होंने आयुर्वेद, धनुर्वेद, गन्धर्ववेद और स्थापत्य आदि उप-वेदों की रचना की।


मनुष्य की उत्पत्ति

ब्रह्मा जी ने महसूस किया कि उनकी सृष्टि में वृद्धि नहीं हो रही है, इसलिए उन्होंने अपने शरीर को दो भागों में विभक्त किया, जिनका नाम 'का' और 'या' (काया) रखा। इन दो भागों में से एक से पुरुष और दूसरे से स्त्री की उत्पत्ति हुई। पुरुष का नाम मनु और स्त्री का नाम शतरूपा था। मनु और शतरूपा ने मानव संसार की शुरुआत की।


सृष्टियों की विविधता

ब्रह्मा जी ने दस प्रकार की सृष्टियों की रचना की, जो इस प्रकार हैं: महत्तत्व की सृष्टि, अहंकार की सृष्टि, भूतसर्ग की सृष्टि, इन्द्रियों की सृष्टि, सात्विक सृष्टि, अविद्या की सृष्टि, वैकृत की सृष्टि, तिर्यगयोनि की सृष्टि, मनुष्यों की सृष्टि, और देवसर्ग वैकृत की सृष्टि।