भगवान जगन्नाथ और एक कसाई भक्त की अद्भुत प्रेम कहानी

भगवान और भक्त के बीच अनोखा संबंध
भक्ति की दुनिया में भगवान और उनके अनुयायियों के बीच प्रेम और स्नेह की कई कहानियाँ हैं। इनमें से एक विशेष और प्रेरणादायक कहानी भगवान जगन्नाथ और उनके एक कसाई भक्त की है। यह कहानी हमें यह सिखाती है कि भगवान का प्रेम और भक्ति की कोई सीमाएँ नहीं होतीं, और उनके भक्तों के प्रति उनका सच्चा प्रेम हमेशा निस्वार्थ और निष्कलंक होता है। यह कहानी एक कसाई के जीवन में बदलाव लाने की है, जिसने भगवान के प्रति अपनी निष्ठा से एक नई दिशा पाई।
कसाई का अनजाना वाकया
कहानी की शुरुआत एक कसाई से होती है, जो अपने जीवन में शुद्धता और पूजा का महत्व नहीं समझता था। एक दिन, वह गलती से भगवान शालिग्राम को अपने मांस तौलने की दुकान में ले आया। लेकिन जैसे ही भगवान ने उसे देखा, उन्होंने अपनी अद्भुत शक्ति से उसे एक नया मार्ग दिखाया।
शालिग्राम का मांस तौलने का अनोखा वाकया
कसाई सदन का जीवन केवल मांस बेचने और तौलने तक सीमित था। एक दिन, जब वह दुकान पर मांस तौल रहा था, उसे एक गोल पत्थर मिला। उसने सोचा कि यह पत्थर तौलने के लिए उपयोगी हो सकता है और उसे अपनी दुकान पर रख लिया। लेकिन उसे यह नहीं पता था कि वह पत्थर वास्तव में भगवान शालिग्राम हैं, जो भगवान विष्णु का रूप हैं। सदन ने उसी पत्थर से मांस तौलना शुरू कर दिया, और इसके साथ ही उसकी आंखों से आंसू बहने लगे।
साधु की चेतावनी
एक दिन, एक साधु महात्मा कसाई की दुकान से गुजरे और देखा कि सदन शालिग्राम से मांस तौल रहा है। साधु ने उसे डांटा और कहा, "तुम क्या कर रहे हो? यह बहुत बड़ा पाप है, तुम नहीं जानते कि यह शालिग्राम है, भगवान विष्णु का रूप है।" सदन ने चौंकते हुए कहा, "महाराज, मुझे इसके बारे में कुछ नहीं पता था, यह मेरी गलती है।"
महात्मा का कार्य
महात्मा ने शालिग्राम को लिया और उसे पवित्र जल से स्नान कराया, पंचामृत से स्नान कराया, चंदन और इत्र लगाया, और फिर उसे चांदी के सिंहासन पर बैठाया। ठाकुर जी के समक्ष भव्य कीर्तन किया और खीर का भोग अर्पित किया। भगवान के प्रति भक्ति और प्रेम में महात्मा की आंखों से आंसू बह रहे थे।
भगवान का संदेश
रात में भगवान शालिग्राम ने महात्मा को सपने में दर्शन दिए और कहा, "मुझे सदन कसाई के पास छोड़ आओ।" महात्मा ने कहा, "प्रभु, वह मांस बेचता है, वह शुद्ध नहीं है, वह पवित्र नहीं है, वह महापापी है। आप वहां क्यों जाना चाहते हैं?" भगवान ने उत्तर दिया, "हमें कहीं स्नान करने में सुख मिलता है, कहीं सिंहासन पर बैठने में सुख मिलता है, लेकिन सदन कसाई के यहां हमें लुड़कने में सुख मिलता है।"
कसाई का जीवन बदलना
अगली सुबह महात्मा ने शालिग्राम को लेकर सदन के पास वापस जाने का निर्णय लिया। जब वह सदन के पास पहुंचे, तो कसाई ने हैरान होकर पूछा, "आपने इसे वापस क्यों लाया? यहाँ तो मैं मांस बेचता हूं, यह तो बहुत गंदा स्थान है।" महात्मा ने उत्तर दिया, "प्रभु ने कहा कि इन्हें तुम्हारे पास ही रहना है, यही उनका आदेश है।" यह सुनकर सदन के हाथ-पांव कांपने लगे, और उसकी आंखों से आंसू बहने लगे। अब उसने निश्चय किया कि वह अपना कारोबार छोड़कर भगवान के चरणों में अपना जीवन समर्पित करेगा।
सदन की नई यात्रा
कसाई ने अपनी दुकान बेच दी और अपने जीवन को भगवान के लिए समर्पित करने का संकल्प लिया। उसने तय किया कि वह भगवान जगन्नाथ से मिलने के लिए पुरी जाएगा। लोग उसे रास्ता बताते गए और वह एक नई दिशा की ओर चल पड़ा, अपने प्रभु से मिलने के लिए।