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भगवान शंकर की वाणी में श्रीरामकथा का गूढ़ रहस्य

भगवान शंकर की वाणी में श्रीरामकथा का गूढ़ रहस्य उजागर होता है। यह कथा केवल युद्ध की नहीं, बल्कि धर्म और मर्यादा की भी है। जानें कैसे भगवान के अवतार का महत्व और दुष्टों के प्रति करुणा का संदेश है। पार्वती के चिंतन से यह स्पष्ट होता है कि संसार का संचालन केवल कर्मों से नहीं, बल्कि ईश्वर की करुणा से भी होता है।
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भगवान शंकर की वाणी में श्रीरामकथा का गूढ़ रहस्य

भगवान शंकर का दिव्य संदेश

भगवान शंकर, जो अद्वितीय महादेव हैं, जिनके सिर पर गंगा का जल है, जिनके गले में हलाहल का विष है, और जिनकी जटाओं में अनंत ब्रह्मांडों की गूंज है—वे आज अपने पावन मुख से जगत को श्रीरामकथा का अमृतपान करवा रहे हैं। उनकी दिव्य वाणी से ऐसा प्रतीत होता है जैसे आकाशगंगा से अमृत की धारा बह रही हो, और देवी पार्वती उसी अमृत को श्रद्धा से ग्रहण कर रही हों।




जब भोलेनाथ कथा का आरंभ करते हैं, तो उनके मुख से वेदों के समान पवित्र चौपाई निकलती है—




“सुनु गिरिजा हरिचरित सुहाए।


बिपुल बिसद निगमागम गाए।।


हरि अवतार हेतु जेहि होई।


इदमित्थं कहि जाइ न सोई।।’’




हे पार्वती! वेदों ने भगवान विष्णु के चरित्रों का गान किया है। ये चरित्र चंद्रकिरणों की तरह निर्मल और जीवनदायिनी हैं। श्रीहरि का अवतरण क्यों होता है, इसका एकमात्र कारण बताना संभव नहीं है। प्रभु के अवतारों के अनगिनत कारण हो सकते हैं, जिन्हें सीमित बुद्धि वाला कोई प्राणी पूरी तरह से नहीं समझ सकता।


ईश्वर के अवतार का रहस्य

जगद्गुरु शंकर आगे बताते हैं कि जो लोग यह मानते हैं कि ईश्वर के अवतरण का केवल एक ही कारण है, वे उसी प्रकार हैं जैसे कोई व्यक्ति महासागर की एक बूँद को देखकर कह दे कि उसने सागर की सम्पूर्ण गहराई नाप ली। यह मूर्खता और अल्पज्ञान का प्रतीक है। सागर की तरह, ईश्वर की महिमा भी अगाध है, और उसकी प्रत्येक बूँद में नए रहस्य छिपे हैं।




हालांकि भगवान शंकर स्वयं सर्वज्ञ और सर्वव्यापक हैं, फिर भी उनकी विनम्रता अद्भुत है। वे पार्वती से बड़े विनम्रता से कहते हैं—




“तस मैं सुमुखि सुनावउँ तोही।


समुझि परइ जस कारन मोही।।


जब जब होई धरम कै हानी।


बाढ़हिं असुर अधम अभिमानी।।


करहिं अनीति जाइ नहिं बरनी।


सीदहिं बिप्र धेनु सुर धरनी।।


तब तब प्रभु धरि बिबिध सरीरा।


हरहिं कृपानिधि सज्जन पीरा।।’’




अर्थात्—हे सुमुखि! जो कारण मुझे समझ में आता है, वही मैं तुम्हें बताता हूँ। जब-जब धर्म की हानि होती है और अधम, अभिमानी असुर अत्याचार करते हैं; तब-तब भगवान विभिन्न प्रकार के दिव्य अवतार धारण कर सज्जनों की रक्षा करते हैं।


पार्वती का चिंतन

देवी पार्वती शंकर की वाणी सुनकर गहन चिंतन में पड़ जाती हैं। उनके मन में प्रश्न उठता है—“दुष्ट जन पाप करने के लिए विवश क्यों होते हैं? वे भी तो शांति से क्यों नहीं रहते?”




वे समझती हैं कि यह प्रश्न स्वभाव और संस्कार के बंधन में उलझा है। हर प्राणी अपने स्वभाव और गुणों से बंधा होता है। जैसे अग्नि का स्वभाव जलाना है, वैसे ही दुष्टों का स्वभाव कष्ट पहुँचाना होता है। स्वभाव परिवर्तन दुर्लभ है।




हालांकि हर किसी को अपने तरीके से जीने का अधिकार है, लेकिन जब किसी का स्वभाव समाज की शांति पर चोट करता है, तब उसका निवारण आवश्यक हो जाता है। यही धर्म का न्याय है।


अवतार का महत्व

यदि कोई साधारण व्यक्ति दुष्टों के अत्याचार का प्रतिकार करता है, तो वह समाजसेवी कहलाता है। लेकिन उसकी सामर्थ्य सीमित होती है। जब वही कार्य भगवान करते हैं, तब उसे “अवतार” कहा जाता है।




रामावतार भी इसी धर्म का मूर्तिमान रूप है। श्रीराम का अवतरण केवल रावण वध तक सीमित नहीं है, बल्कि उनके जीवन की प्रत्येक लीला में आदर्श और धर्म का संदेश है।




इसलिए भगवान शंकर बार-बार यह बताते हैं कि ईश्वर के अवतार का एकमात्र कारण खोजना व्यर्थ है। कारण अनगिनत हैं, जिन्हें केवल वही जान सकता है जो सर्वज्ञ है।


धर्म और मर्यादा की कथा

पार्वती अब समझने लगती हैं कि संसार का संचालन केवल कर्म और फल के न्याय से नहीं, बल्कि ईश्वर की करुणा से भी होता है। जब दुष्टों की प्रवृत्ति असह्य हो जाती है, तब प्रभु का अवतरण निश्चित हो जाता है। यही उनकी अनुकंपा का नियम है।




रामकथा केवल युद्ध और वध की कथा नहीं है, यह धर्म और मर्यादा की कथा है। यह सिखाती है कि अन्याय के विरुद्ध खड़ा होना भी उतना ही आवश्यक है जितना करुणा और प्रेम का पालन करना।




अवतार का रहस्य इतना गहन है कि शंकर जैसे सर्वज्ञ देवता भी केवल एक अंश का ही वर्णन कर पाते हैं। यह वही रहस्य है जिसे सुनकर पार्वती भी समाधि में लीन हो जाती हैं।




अवतार का यह अद्भुत रहस्य अगले प्रसंग में और अधिक प्रकाश में आएगा—




क्रमशः...




- सुखी भारती