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भगवान शिव और देवी पार्वती के संवाद में श्रीराम का रहस्य

भगवान शिव देवी पार्वती को श्रीराम के बारे में महत्वपूर्ण उपदेश देते हैं। इस संवाद में शिव जी ने बताया कि सगुण और निर्गुण में कोई भेद नहीं है। पार्वती जी ने शिव जी की बातों को ध्यान से सुना और उनके ज्ञान को स्वीकार किया। जानें इस संवाद में छिपा रहस्य और भगवान शिव के विचारों का महत्व।
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भगवान शिव और देवी पार्वती के संवाद में श्रीराम का रहस्य

भगवान शिव का पार्वती को उपदेश

भगवान शिव देवी पार्वती को भगवान श्रीराम के बारे में विस्तार से बताना शुरू करते हैं। उन्होंने अब तक कभी भी उनके किसी प्रश्न को नाराजगी से नहीं लिया। लेकिन अब उनके मुंह से यह वाक्य निकलता है-




‘एक बात नहिं माहि सोहानी।


जदपि मोह बस कहेहु भवानी।।


तुम्ह जो कहा राम कोउ आना।


जेहि श्रुति गाव धरहिं मुनि ध्याना।।’




हे पार्वती! एक बात मुझे अच्छी नहीं लगी। यद्यपि तुमने यह मोह के वश होकर कहा है कि राम कोई और हैं, जिनका वेद गाते हैं और मुनिजन जिनका ध्यान करते हैं।




यह विचारणीय है कि क्या भगवान शिव वास्तव में देवी पार्वती के विचारों से नाराज थे? नहीं! वे तो यह संदेश देना चाहते थे कि भगवान श्रीराम और वह परम शक्ति, जिसे वेद भी गाते हैं, में कोई भेद नहीं है। यदि कोई दशरथ नंदन श्रीराम और सूक्ष्म रूप में समाई दिव्य शक्ति में भेद मानता है, तो वह महाअभागा है। इस पर भोलेनाथ कहते हैं-




‘कहहिं सुनहिं अस अधम नर ग्रसे जे मोह पिसाच।


पाषंडी हरि पद बिमुख जानहिं झूठ न साच।।’




अर्थात जो मोह के पिशाच से ग्रस्त हैं, पाखंडी हैं, भगवान के चरणों से विमुख हैं, और जो सत्य और असत्य में भेद नहीं जानते, ऐसे अधम लोग ही इस तरह की बातें करते हैं।




जिन्हें निर्गुण और सगुण का ज्ञान नहीं है, जो मनगढंत बातें करते हैं, और जो श्रीहरि की माया में भ्रमित हैं, उनके लिए कुछ भी कहना असंभव नहीं है।




भगवान शिव के विचार सुनकर देवी पार्वती कहती हैं, ‘हे देव! आप जो कह रहे हैं, वह ही सत्य होगा। लेकिन मैं या मेरी जैसी बुद्धि वाले लोग क्या करें-




‘अस निज हृदयँ बिचारि तजुं संसय भजु राम पद।


सुनु गिरिराज कुमारि भ्रम तम रबि कर बचन मम।।’




हे पार्वती! तुम्हारे पास केवल एक राम बाण है, कि तुम केवल मेरे वचनों पर विश्वास करो। मेरे वचन ऐसे हैं, जैसे अंधकार को दूर करने के लिए सूर्य की किरणें। अब मैं तुम्हें सगुण और निर्गुण परमात्मा पर विशेष बल देकर समझाता हूँ-




‘सगुनिह अगुनहि नहिं कछु भेदा।


गावहिं मुनि पुरान बुध बेदा।।


अगुन अरुप अलख अज जोई।


भगत प्रेम बस सगुन सो होई।।’




हे पार्वती! मैं सत्य कह रहा हूँ कि सगुण और निर्गुण में कोई भेद नहीं है। सभी मुनि, पुराण, पंडित और वेद ऐसा ही कहते हैं। जो निर्गुण, अरूप, अलख और अजन्मा है, वही भक्तों के प्रेम से सगुण हो जाता है।




साधारण शब्दों में समझाया जाए तो जल और ओले में क्या भेद है? एक सामान्य व्यक्ति भी बता सकता है कि बाहरी रूप से जल और ओले की बनावट में भेद है, लेकिन भीतर से दोनों एक ही हैं। उनका भीतरी रूप है ‘जल’। जब जल किसी के हाथों में नहीं बंधता, तो वह तरल रहता है। लेकिन यदि वह सोच ले कि मुझे एक रूप में आकार लेना है, तो वह ओले के रूप में आ जाता है। परमात्मा भी इसी प्रकार है। जब वह किसी सथूल प्रभाव में नहीं रहना चाहता, तो वह निराकार प्रकाश रूप में रहता है। लेकिन जब भक्तों के प्रेम में बंधता है, तो वह देह धारण कर लेता है और साकार कहलाता है।




देवी पार्वती ध्यान से भगवान शिव की सीख सुन रही हैं।




क्रमशः




- सुखी भारती