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भगवान शिव के नटराज स्वरूप का रहस्य और अपस्मार का महत्व

इस लेख में भगवान शिव के नटराज स्वरूप और उसके पैरों के नीचे दबे अपस्मार नामक दानव के रहस्य को उजागर किया गया है। जानें कैसे भगवान शिव का नृत्य सृष्टि के संतुलन को बनाए रखता है और अपस्मार का महत्व क्या है। यह लेख आपको शिव की शिक्षाओं और उनके नृत्य की गहराई में ले जाएगा।
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भगवान शिव के नटराज स्वरूप का रहस्य और अपस्मार का महत्व

भगवान शिव का नृत्य और सृष्टि का संतुलन

लखनऊ। जब भगवान शिव ने त्रिपुर नामक असुर का वध किया, तो वे खुशी से नृत्य करने लगे। प्रारंभ में उन्होंने अपनी भुजाएं नहीं खोलीं, क्योंकि उन्हें पता था कि इससे प्रकृति का संतुलन बिगड़ सकता है। लेकिन बाद में, वे नृत्य में इतने मग्न हो गए कि उन्होंने खुलकर नृत्य करना शुरू कर दिया, जिससे सृष्टि में असंतुलन उत्पन्न होने लगा। इस स्थिति में देवी पार्वती ने प्रेम और आनंद में लास्य नृत्य आरंभ किया, जिससे सृष्टि में संतुलन स्थापित होने लगा और भगवान शिव भी शांत हो गए। भगवान शिव को सृष्टि के पहले नर्तक के रूप में भी जाना जाता है।


नटराज स्वरूप का ऐतिहासिक महत्व

भगवान शिव के नटराज स्वरूप का विकास सातवीं शताब्दी के पल्लव और आठवीं से दसवीं शताब्दी के बीच चोल साम्राज्य से जुड़ा हुआ है। योगसूत्र के जनक महर्षि पतंजलि द्वारा निर्मित चिदंबरम में स्थित नटराज की भव्य मूर्ति इस बात का पुख्ता प्रमाण है। महर्षि पतंजलि ने भगवान शिव के नटराज स्वरूप को योगेश्वर शिव के रूप में निरूपित करने का प्रयास किया।


अपस्मार: नटराज के पैरों के नीचे दबा दानव

भगवान शिव के नटराज रूप में एक बौने राक्षस पर तांडव नृत्य करते हुए दिखते हैं। यह बौना राक्षस, जिसे अपस्मार कहा जाता है, अज्ञानता और विस्मृति का प्रतीक है। अपस्मार को रोग का प्रतिनिधि भी माना जाता है, और मिर्गी के रोग को संस्कृत में अपस्मार कहा जाता है। योग में 'नटराजासन' नामक आसन नियमित रूप से करने पर मिर्गी से मुक्ति दिलाने में सहायक होता है।


अपस्मार की कथा और भगवान शिव का नृत्य

एक कथा के अनुसार, अपस्मार एक बौना राक्षस था जो स्वयं को सर्वशक्तिशाली समझता था। स्कन्द पुराण में उसे अमर बताया गया है। एक बार ऋषियों ने अपनी सिद्धियों पर अभिमान कर लिया और भगवान शिव और माता पार्वती को भिक्षुक के रूप में देखकर क्रोधित हो गए। उन्होंने अपस्मार को भगवान शिव पर आक्रमण करने के लिए कहा। भगवान शिव ने अपस्मार को अपने पैरों के नीचे दबाकर नृत्य किया, जिससे उसकी सभी शक्तियों का नाश हो गया।


भगवान शिव का नटराज स्वरूप और उसकी शिक्षा

भगवान शिव का नटराज स्वरूप हमें यह सिखाता है कि हम अपने दोषों को संतुलित कर सकते हैं। महादेव का यह स्वरूप न केवल पाप के दलन का प्रतीक है, बल्कि आत्मसंयम और इच्छाशक्ति का भी प्रतीक है।