भारत की पहचान: मोहन भागवत का संदेश
राष्ट्रीय शिक्षा सम्मेलन में मोहन भागवत का संबोधन
आरएसएस से जुड़े शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास द्वारा अमृता इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल साइंसेज में आयोजित राष्ट्रीय शिक्षा सम्मेलन 'ज्ञान सभा' में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा, 'भारत एक व्यक्तिवाचक संज्ञा है। इसका अनुवाद नहीं किया जाना चाहिए। इंडिया भारत है, यह सच है। लेकिन भारत, भारत है। इसलिए बात करते, लिखते और बोलते समय, चाहे वह व्यक्तिगत हो या सार्वजनिक, हमें भारत को भारत ही कहना चाहिए।'
उन्होंने आगे कहा, 'भारत की पहचान का सम्मान इसलिए है क्योंकि यह भारत है। यदि आप अपनी पहचान खो देते हैं, तो आपके पास चाहे कितने भी अच्छे गुण हों, आपको इस दुनिया में कभी सम्मान या सुरक्षा नहीं मिलेगी। यही नियम है।' भागवत ने कहा कि भारत को जानो, भारत को मानो, भारत के बनो- यही भारतीयता है। उन्होंने यह भी कहा कि भारत को अब 'सोने का चिड़िया' बनने की आवश्यकता नहीं है; अब समय आ गया है कि वह 'शेर' बने। यह इसलिए आवश्यक है क्योंकि दुनिया शक्ति को समझती है।
संघ प्रमुख ने यह भी कहा कि भारत शस्त्र और शास्त्र में विश्वास रखने वाला देश है और यह विश्व के प्राचीनतम देशों में से एक है। भारत का अपना एक समृद्ध इतिहास और संस्कृति है। हमारे धार्मिक ग्रंथों में भी भारत को कई नामों से पुकारा गया है।
कुछ विद्वान इसे जैन तीर्थकर ऋषभदेव के ज्येष्ठ पुत्र भरत के नाम से भारत वर्ष मानते हैं, जबकि अन्य इसे राजा दुष्यन्त के वीर पुत्र भरत के नाम से मानते हैं। वास्तव में, भारत के इतिहास में इसे कई नामों से जाना गया है, जैसे भारत, भारतवर्ष, आर्यभूमि, हिन्दुस्थान आदि। प्राचीन ईरानियों ने इसे सिंधु देश कहा, जो बाद में हिन्दू देश कहलाया। यूनानियों ने इसे इंडस कहा, जो बाद में इंडिया बन गया।
भारत को सोने की चिड़िया कहने वाले आक्रमणकारी थे, जिन्होंने हमारी संस्कृति को नुकसान पहुँचाया। अब भारत विश्व के प्रमुख देशों में से एक बन चुका है। यह सैन्य और आर्थिक शक्ति के रूप में अपनी पहचान बना रहा है। वैज्ञानिक दृष्टि से भी भारत ने अंतरिक्ष में अपनी अलग पहचान बनाई है।
भारत को सोने की चिड़िया कहना भारतीयों के गौरवमयी अतीत को नकारना है। मोहन भागवत का 'भारत को शेर बनने' का संदेश स्वागत योग्य है। भारतीयों को इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए कार्य करना होगा।
इन तथ्यों को देखते हुए, अब भारतवासियों को विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा दी गई पहचान को समाप्त कर अपनी गौरवमयी संस्कृति और इतिहास से जुड़ने की आवश्यकता है। यह जुड़ाव केवल भारत नाम के साथ ही संभव है।
-इरविन खन्ना, मुख्य संपादक।