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मंदिर में जूते-चप्पल उतारने का महत्व: धार्मिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण

मंदिर में जूते-चप्पल उतारने की परंपरा का धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व है। यह न केवल पवित्रता को बनाए रखने में मदद करता है, बल्कि अहंकार को भी त्यागने का प्रतीक है। जानें इस परंपरा के पीछे के कारण और इसके महत्व के बारे में।
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मंदिर में जूते-चप्पल उतारने का महत्व: धार्मिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण

जूते-चप्पल उतारने की परंपरा

जब हम मंदिर में पूजा करने जाते हैं, तो अक्सर जूते-चप्पल बाहर उतारने की परंपरा का पालन करते हैं। हालांकि, कुछ लोग यह तर्क करते हैं कि विदेशों में लोग जूते पहनकर पूजा करते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इससे क्या फर्क पड़ता है? क्या जूते पहनकर पूजा करने से कोई पाप लगता है और इसके पीछे क्या धार्मिक और वैज्ञानिक कारण हैं? हिंदू धर्म में पूजा-पाठ को अत्यंत पवित्र माना जाता है।




पूजा-पाठ के दौरान शारीरिक, मानसिक और आत्मा की शुद्धि के साथ-साथ पवित्रता का भी बड़ा महत्व होता है। इसी कारण से जूते-चप्पल को मंदिर के बाहर उतारने की परंपरा है। क्योंकि हम सड़कों पर चलते हुए कई प्रकार की गंदगी से गुजरते हैं।




इसलिए, मंदिर जैसी पवित्र जगहों पर उस गंदगी को लेकर नहीं जाना चाहिए। मंदिर के बाहर जूते-चप्पल उतारने का एक और कारण यह है कि हम मंदिर में ध्यान लगाते हैं। यदि आप जूते-चप्पल पहनकर मंदिर के परिसर में घूमते हैं, तो इससे बीमारियों का फैलाव हो सकता है। इसी कारण मंदिरों में पैर धोने की सुविधा भी होती है। जूते-चप्पल बाहर उतारने से मंदिर की पवित्रता और स्वच्छता बनी रहती है।


अहंकार का त्याग

अहंकार छोड़कर जाएं


भगवान की शरण में जाने के लिए आवश्यक है कि हम सांसारिकता और भौतिकता को छोड़ दें। जब हम मंदिर के बाहर जूते उतारते हैं, तो हम अपने अहंकार को भी त्यागते हैं। भारतीय परंपरा में आश्रमों, मंदिरों और घर के पूजा स्थलों में नंगे पैर जाना नम्रता, श्रद्धा और आत्मसमर्पण का प्रतीक है।




मंदिर में पूजा और ध्यान करने के लिए जमीन पर बैठना आवश्यक होता है। गहरे ध्यान में उतरने के लिए शरीर का सहज और हल्का होना जरूरी है। जूते या चप्पल पहनकर आप उतनी सहजता से नहीं बैठ पाएंगे।




इसलिए, हिंदू धर्म में धार्मिक स्थलों पर जूते-चप्पलों को बाहर उतारने की परंपरा है। जूते पहनकर मंदिर जाना पाप नहीं है, लेकिन यह धार्मिक दृष्टिकोण से गलत माना जाता है।