Newzfatafatlogo

महाकाल: दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग की अद्भुत महिमा

महाकालेश्वर, जो दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग के रूप में पूजे जाते हैं, का महत्व अद्वितीय है। यह स्थान न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसे पृथ्वी का केंद्र भी माना जाता है। महाकाल की पूजा से यमराज की यातनाओं से मुक्ति की मान्यता है। उज्जैन में स्थित इस मंदिर की विशेषताएं और इसके आसपास के अन्य धार्मिक स्थलों के बारे में जानें।
 | 
महाकाल: दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग की अद्भुत महिमा

महाकाल का महत्व

नई दिल्ली: महाकाल, जिन्हें कालों के काल के रूप में जाना जाता है, द्वादश ज्योतिर्लिंगों में तीसरे स्थान पर पूजे जाते हैं। ये कलयुग के कर्ता और प्राणियों के काल हरने वाले हैं। महाकाल का यह ज्योतिर्लिंग दक्षिण दिशा में स्थित है, जो इसे विशेष बनाता है। वास्तु के अनुसार, दक्षिण दिशा के स्वामी यमराज हैं, और इसलिए महाकाल को मृत्यु से परे होने के कारण यह नाम दिया गया है। मान्यता है कि जो व्यक्ति सच्चे मन से महाकालेश्वर की पूजा करता है, उसे यमराज द्वारा दी जाने वाली यातनाओं से मुक्ति मिलती है।


महाकालेश्वर का अद्वितीय स्थान

सभी शिव मंदिरों में, जहां ज्योतिर्लिंग की जलाधारी उत्तर दिशा की ओर होती है, महाकालेश्वर का जलाधारी दक्षिण दिशा की ओर है। उज्जैन के राजा महाकाल के सामने सिर नहीं ढका जाता है, क्योंकि शास्त्रों में कहा गया है कि 'जहां राजा उपस्थित हो, वहां कोई सिर ढककर नहीं बैठ सकता।' इस कारण से महाकाल मंदिर में सिर ढकना वर्जित है। इस क्षेत्र की महिमा स्वर्ग से भी अधिक मानी जाती है।


महाकाल का क्षेत्र

महाकाल के स्थान के बारे में कहा जाता है कि यहां श्मशान, ऊषर जमीन, सामान्य क्षेत्र, पीठ और वन का संयोग है। पुराणों में वर्णित है कि आकाश में तारकलिंग, पाताल में हटकेश्वर और मृत्युलोक में महाकाल स्थित हैं। बाबा महाकाल के मंदिर के ऊपर नागचन्द्रेश्वर का मंदिर है, जो नागों के देवता के रूप में पूजे जाते हैं। यह मंदिर केवल नागपंचमी पर खुलता है।


महाकाल की आरती और समय का मानक

महाकाल की आरती चिता की ताजा भस्म से की जाती है, हालांकि अब कंडे की भस्म का उपयोग किया जाता है। प्राचीन काल में, यहां से संपूर्ण विश्व का मानक समय निर्धारित होता था। उज्जैन का आकाश काल्पनिक कर्क रेखा से गुजरता है, और इसे पृथ्वी का केंद्र माना जाता है। महाकाल के मंदिर के पास हरसिद्धि माता और भैरव पर्वत पर स्थित दो शक्ति पीठ भी हैं।


उज्जैन की पवित्रता

उज्जैन वही पवित्र स्थल है जहां श्रीकृष्ण, सुदामा और बलराम ने शिक्षा ग्रहण की थी। यहां मंगलनाथ महादेव भी विराजमान हैं। चिंतामन गणेश मंदिर, जो महाकालेश्वर से 6 किलोमीटर दूर है, भगवान गणेश को समर्पित है। यह मंदिर भगवान श्रीराम द्वारा स्थापित किया गया था।


उज्जैन का शनि मंदिर

उज्जैन का शनि मंदिर, जो लगभग 2000 साल पुराना है, आज भी गौरवान्वित खड़ा है। यह एकमात्र नवग्रह मंदिर है जहां शनिदेव को भगवान शिव के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है। इस प्रकार, महाकाल को उज्जैन के राजा के रूप में पूजा जाता है, और यहां कोई भी राजा या प्रशासक रात को नहीं रुक सकता।