महालक्ष्मी व्रत: पूजा विधि और महत्व
महालक्ष्मी व्रत, जो भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से शुरू होता है, मां लक्ष्मी को समर्पित है। यह 16 दिनों तक चलता है और भक्त सुख-समृद्धि की कामना करते हैं। इस व्रत की पूजा विधि में हल्दी से कमल का चित्र बनाना, मां लक्ष्मी की मूर्ति स्थापित करना और श्रीयंत्र का उपयोग करना शामिल है। जानें इस व्रत का महत्व और अंतिम तिथि के बारे में।
Sep 14, 2025, 11:46 IST
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महालक्ष्मी व्रत का महत्व
महालक्ष्मी व्रत भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से आरंभ होकर आश्विन माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तक चलता है। यह व्रत विशेष रूप से मां लक्ष्मी को समर्पित है। इस व्रत की अवधि 16 दिनों की होती है, जिसमें भक्त मां लक्ष्मी की पूजा करके सुख, समृद्धि और खुशहाली की कामना करते हैं। इसे गज लक्ष्मी व्रत भी कहा जाता है, क्योंकि इस पूजा में मां लक्ष्मी को गज पर विराजमान करके पूजा जाता है।
धार्मिक मान्यता
इस व्रत को करने से जीवन की सभी समस्याएं दूर होती हैं और मां लक्ष्मी का आशीर्वाद सदैव बना रहता है। महालक्ष्मी व्रत न केवल आध्यात्मिक बल्कि पारिवारिक और आर्थिक समृद्धि के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।
अंतिम महालक्ष्मी व्रत
अंतिम महालक्ष्मी व्रत
दृक पंचांग के अनुसार, इस वर्ष आश्विन माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 14 सितंबर को सुबह 05:04 बजे से शुरू होगी। यह तिथि अगले दिन, यानी 15 सितंबर को सुबह 03:06 बजे तक मान्य रहेगी। इस प्रकार, उदयातिथि के अनुसार अंतिम महालक्ष्मी व्रत 14 सितंबर 2025 को मनाया जाएगा।
पूजन विधि
पूजन विधि
मां लक्ष्मी की पूजा के लिए सबसे पहले पूजा स्थल पर हल्दी से कमल का चित्र बनाएं। इसके बाद, इस पर मां लक्ष्मी की गज पर विराजमान मूर्ति स्थापित करें। पूजा में श्रीयंत्र रखना न भूलें, क्योंकि यह यंत्र मां लक्ष्मी को प्रिय है।
इसके साथ ही, सोने-चांदी के सिक्के, फूल, ताजे फल और मां के श्रृंगार का सामान रखें। फिर एक साफ और स्वच्छ कलश में पानी भरकर उसे पूजा स्थल पर रखें, कलश में पान का पत्ता डालें और इसके ऊपर नारियल रखें। इसके बाद, फल, फूल और अक्षत से मां लक्ष्मी की पूजा करें। पूजा के अंत में चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत का उद्यापन करें।