मार्गशीर्ष मास में जीरा का सेवन क्यों है वर्जित?
मार्गशीर्ष मास, जिसे भगवान श्रीकृष्ण का प्रिय महीना माना जाता है, में जीरा का सेवन वर्जित है। इस लेख में जानें कि क्यों आयुर्वेद और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस मास में जीरा नहीं खाना चाहिए। जीरा के सेवन से स्वास्थ्य पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभावों और धार्मिक परंपराओं के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त करें।
| Nov 11, 2025, 05:22 IST
भगवान श्रीकृष्ण का प्रिय महीना
मार्गशीर्ष माह को हिंदू पंचांग में भगवान श्रीकृष्ण का प्रिय महीना माना जाता है। श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि महीनों में मैं मार्गशीर्ष हूं। इस मास में पूजा, व्रत और सात्त्विक भोजन का विशेष महत्व है। शास्त्रों के अनुसार, इस समय व्यक्ति को अपने आहार और पवित्रता का ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि यह महीना तप और भक्ति का प्रतीक है।
जीरा का सेवन क्यों न करें?
आयुर्वेद के अनुसार, अगहन मास में जीरा का सेवन नहीं करना चाहिए। यदि इस मास में जीरा खाया जाता है, तो यह स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकता है और कई समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। आइए जानते हैं कि अगहन मास में जीरा खाना क्यों वर्जित है।
जीरा न खाने के कारण
- पुराणों और आयुर्वेदिक ग्रंथों में कहा गया है कि अगहन मास में जीरा खाने से शरीर की अग्नि (पाचन शक्ति) बढ़ जाती है। चूंकि यह महीना शीत ऋतु का होता है, जीरा जैसी गर्म तासीर का सेवन संतुलन को बिगाड़ सकता है। धर्मशास्त्रों के अनुसार, इस मास में संयमित रहना आवश्यक है। जीरा का सेवन इंद्रियों को उत्तेजित करता है, इसलिए इसे व्रत या पूजा के समय से त्यागने की परंपरा है। इसे रजोगुण बढ़ाने वाला माना जाता है, जो ध्यान और एकाग्रता में बाधा डाल सकता है।
- पारंपरिक मान्यता के अनुसार, अगहन मास में जीरा खाने से लक्ष्मी की कृपा कम होती है। यह महीना श्रीहरि विष्णु की उपासना का है, और श्रीहरि को सात्त्विक भोजन प्रिय है। जीरा को तामसिक और उष्ण गुण वाला माना जाता है, इसलिए इससे परहेज किया जाता है। कई पूजा विधियों में, विशेषकर मार्गशीर्ष पूर्णिमा तक, किचन में जीरे का उपयोग नहीं किया जाता। इसके स्थान पर हींग या काली मिर्च का उपयोग किया जाता है।
- आयुर्वेद के अनुसार, जीरा शरीर में पित्त और उष्ण वीर्य को बढ़ाता है। अगहन मास में पित्त दोष पहले से ही सक्रिय हो जाता है, इसलिए इस मास में जीरा का सेवन वर्जित है। जीरा खाने से त्वचा रोग, सिरदर्द या पाचन संबंधी समस्याएं हो सकती हैं। यह परंपरा केवल धार्मिक नहीं, बल्कि स्वास्थ्य से भी जुड़ी है। इस मास में जीरा खाने से ध्यान भटकता है, नींद प्रभावित होती है और मानसिक शांति भी खो जाती है।
