विघ्नराज संकष्टी चतुर्थी: विशेष पूजा विधि और उपाय

विघ्नराज संकष्टी व्रत का महत्व
नई दिल्ली: आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को 'विघ्नराज संकष्टी व्रत' मनाने का विशेष महत्व है। इस दिन सूर्य सिंह राशि में और चंद्रमा शाम 4:03 बजे मीन राशि में रहेंगे, इसके बाद चंद्रमा मेष राशि में प्रवेश करेगा। पंचांग के अनुसार, यह चतुर्थी तिथि 10 सितंबर को दोपहर 3:37 बजे से शुरू होकर 11 सितंबर को दोपहर 12:45 बजे समाप्त होगी।
व्रत की विधि
उदया तिथि के अनुसार, चतुर्थी का व्रत 10 सितंबर (बुधवार) को रखा जाएगा। 'संकष्टी' का अर्थ है 'संकटों को दूर करने वाली'। मान्यता है कि इस दिन विधिपूर्वक पूजा करने से जीवन में आने वाली सभी बाधाएं और समस्याएं समाप्त हो जाती हैं। माताएं अपने बच्चों की लंबी उम्र और स्वास्थ्य के लिए यह व्रत करती हैं।
पूजा की तैयारी
विघ्नराज संकष्टी व्रत की शुरुआत के लिए जातक को ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करना चाहिए। इसके बाद पीले वस्त्र पहनकर पूजा स्थल को साफ करें। भगवान गणेश की प्रतिमा के समक्ष दूर्वा, सिंदूर और लाल फूल अर्पित करें। फिर श्री गणपति को बूंदी के लड्डू का भोग लगाएं। इनमें से 5 लड्डुओं का दान ब्राह्मणों को करें और 5 भगवान के चरणों में रखें, बाकी प्रसाद के रूप में वितरित करें।
पूजन के दौरान मंत्र और अर्घ्य
पूजन के समय श्री गणेश स्तोत्र, अथर्वशीर्ष, और संकटनाशक गणेश स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। 'ऊं गं गणपतये नमः' मंत्र का 108 बार जाप करें। शाम को गाय को हरी दूर्वा या गुड़ खिलाना शुभ माना जाता है। चतुर्थी की रात को चंद्रमा को अर्घ्य देते हुए 'सिंहिका गर्भसंभूते चन्द्रमांडल सम्भवे। अर्घ्यं गृहाण शंखेन मम दोषं विनाशय॥' मंत्र बोलकर जल अर्पित करें। यदि संभव हो तो संकष्टी का व्रत रखें, जिससे ग्रहबाधा और ऋण जैसे दोष शांत होते हैं।