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विघ्नराज संकष्टी चतुर्थी व्रत: महत्व और पूजा विधि

विघ्नराज संकष्टी चतुर्थी व्रत का आयोजन हर महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को किया जाता है। इस दिन भगवान गणेश की पूजा की जाती है, जो जीवन की सभी कठिनाइयों से मुक्ति दिलाने में सहायक होती है। इस लेख में हम इस व्रत का महत्व, पूजा विधि और इससे मिलने वाले लाभ के बारे में विस्तार से जानेंगे। जानें कैसे इस व्रत के माध्यम से सुख-समृद्धि और स्वास्थ्य लाभ प्राप्त किया जा सकता है।
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विघ्नराज संकष्टी चतुर्थी व्रत: महत्व और पूजा विधि

विघ्नराज संकष्टी चतुर्थी व्रत का महत्व

आज विघ्नराज संकष्टी चतुर्थी का व्रत है, जो जीवन की सभी कठिनाइयों से मुक्ति दिलाने में सहायक होता है। इस व्रत के माध्यम से भगवान गणेश की कृपा प्राप्त होती है। आइए, जानते हैं इस व्रत का महत्व और पूजा विधि।


विघ्नराज संकष्टी चतुर्थी व्रत की जानकारी

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, हर महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को संकष्टी चतुर्थी का व्रत किया जाता है। आश्विन मास की संकष्टी चतुर्थी को विघ्नराज संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है। इस दिन भगवान श्रीगणेश की पूजा की जाती है और रात को चंद्रमा की पूजा के बाद व्रत का समापन होता है। पंडितों का मानना है कि जो भक्त सच्चे मन से भगवान गणेश की आराधना करता है, उसे संतान, स्वास्थ्य और आर्थिक समस्याओं से राहत मिलती है।


विघ्नराज संकष्टी चतुर्थी व्रत का समय

पंचांग के अनुसार, आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि 10 सितंबर, बुधवार को दोपहर 03:38 बजे से शुरू होकर 11 सितंबर, गुरुवार को 12:45 बजे तक रहेगी। चतुर्थी तिथि का चंद्रोदय 10 सितंबर को होगा, इसलिए इसी दिन व्रत किया जाएगा।


पूजा विधि

इस व्रत के दिन भक्तों को सुबह जल्दी उठकर स्नान करना चाहिए और व्रत का संकल्प लेना चाहिए। दिनभर व्रत के नियमों का पालन करें। आप निर्जला उपवास या फलाहार कर सकते हैं। चंद्रोदय के समय, भगवान श्रीगणेश की प्रतिमा स्थापित करें और उनकी पूजा करें। पूजा के दौरान ऊं गं गणपतये नम: मंत्र का जाप करें और लड्डू का भोग लगाएं। चंद्रमा के उदय पर जल से अर्ध्य दें और फिर भोजन करें। इस प्रकार व्रत करने से घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है।


शुभ योग

पंडितों के अनुसार, इस संकष्टी चतुर्थी पर वृद्धि योग, ध्रुव योग और शिववास योग का संयोग बन रहा है। इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती कैलाश पर्वत पर विराजमान रहेंगे। इन योगों में भगवान गणेश की पूजा विशेष फलदायी मानी जाती है।


व्रत का विशेष महत्व

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, विघ्नराज संकष्टी चतुर्थी व्रत से संतान, स्वास्थ्य और आर्थिक समस्याओं से मुक्ति मिलती है। यह व्रत जीवन में सकारात्मकता लाता है और नकारात्मक ऊर्जा को समाप्त करता है। गणेश उत्सव के बाद यह पहला व्रत है, जो भगवान गणेश को समर्पित है।


व्रत से सुख-समृद्धि

संकष्टी चतुर्थी का व्रत रखने से घर में सुख-शांति और आर्थिक समृद्धि बनी रहती है।


नकारात्मकता का नाश

सच्चे मन से गणपति बप्पा की आराधना करने से जीवन में सकारात्मकता आती है और नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है।


धन लाभ

भगवान गणेश की पूजा से बुद्धि और ज्ञान में वृद्धि होती है। आर्थिक तंगी के समय गुड़ और घी का भोग लगाने से धन लाभ होता है।


मंत्र जाप

विघ्नराज संकष्टी चतुर्थी व्रत के दिन ऊँ वक्रतुण्ड महाकाय सूर्य कोटि समप्रभ मंत्र का जाप करें।


प्रसाद का भोग

इस व्रत पर गणेश जी को गुड़-घी का भोग लगाकर इसे गाय को खिला सकते हैं।


रोचक बातें

पंडितों के अनुसार, चतुर्थी के देवता गणेश हैं। इस तिथि में उनकी पूजा से सभी विघ्नों का नाश होता है। संकष्टी चतुर्थी का अर्थ संकट को हरने वाली चतुर्थी है।