विश्वकर्मा पूजा: महत्व और विधि जानें

विश्वकर्मा पूजा का महत्व
सनातन धर्म में विश्वकर्मा पूजा का एक महत्वपूर्ण स्थान है। इसे भगवान विश्वकर्मा के जन्म के अवसर पर मनाया जाता है। भगवान विश्वकर्मा को इस सृष्टि के पहले शिल्पकार, वास्तुकार और इंजीनियर माना जाता है, इसलिए उनकी पूजा विशेष महत्व रखती है। इस दिन शिल्पकार, कारीगर और इंजीनियर अपनी मशीनों और औजारों की पूजा करते हैं। मान्यता है कि इस पूजा से भगवान विश्वकर्मा का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
कब मनाई जाएगी विश्वकर्मा पूजा?
हिंदू पंचांग के अनुसार, आश्विन माह की कृष्ण एकादशी तिथि 17 सितंबर को रात 12:21 बजे प्रारंभ होगी और इसका समापन उसी दिन रात 11:39 बजे होगा। इसलिए, उदया तिथि के अनुसार, 17 सितंबर को विश्वकर्मा पूजा का आयोजन किया जाएगा।
विश्वकर्मा पूजा का महत्व
भगवान विश्वकर्मा को ब्रह्मांड का दिव्य वास्तुकार माना जाता है। उन्होंने स्वर्ग लोक, द्वारका नगरी और इंद्र के वज्र जैसी कई दिव्य संरचनाओं का निर्माण किया है। यह त्योहार शिल्पकारों, कारीगरों, इंजीनियरों और मशीनों से जुड़े कार्यस्थलों पर मनाया जाता है। इस दिन लोग अपनी मशीनों, यंत्रों और औजारों की पूजा करते हैं।
विश्वकर्मा पूजा की विधि
- पूजा से पहले सभी औजारों, मशीनों और कार्यस्थल की सफाई करें।
- सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और पूजा का संकल्प लें।
- एक वेदी पर भगवान विश्वकर्मा की मूर्ति स्थापित करें।
- पूजा में फूल, अक्षत, रोली, चंदन, हल्दी, दीपक, धूप, फल और मिठाई शामिल करें।
- पहले श्रीगणेश की पूजा करें, फिर भगवान विश्वकर्मा को तिलक लगाएं और फूलों की माला अर्पित करें।
- सभी औजारों और मशीनों पर तिलक लगाकर उनकी पूजा करें।
- फूल और अक्षत चढ़ाएं और 'ॐ विश्वकर्मणे नमः' का जाप करें।
- अंत में भगवान विश्वकर्मा की आरती करें और प्रसाद चढ़ाएं।
- पूजा के बाद प्रसाद का वितरण करें और गरीबों को दान दें।